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________________ ६१ तीर्थङ्कर नेमिनाथ विषयक साहित्य वसन्तोत्सव मनाने के लिए द्वारवती के सभी नर-नारी जन उल्लास से भर रहे हैं और टोलियों के रूप में वन की ओर जा रहे हैं । नेमि जिन भी अपनी भाभियों की प्रेरणा से वसन्तोत्सव में जाने के लिए तैयार हो जाते हैं । वन में पहुँचकर सभी ने वसन्तोत्सव सम्पन्न किया । वसन्तोत्सव से वापस लौटने पर कवि ने प्रसिद्ध घटना की ओर ध्यान आकृष्ट किया है । एक दिन सभा में नेमि जिन के बल का कथन हो रहा था । बलदेव ने कहा कि नेमि जिन से बढ़ कर कोई शक्तिशाली नहीं है । इस कथन को सुनकर श्रीकृष्ण को अभिमान उत्पन्न हो जाता है और उन्होंने नेमि जिन से कहा कि यदि आप अधिक बलशाली हैं तो मल्लयुद्ध करके देख लीजिए । तब नेमिजिन ने उत्तर दिया - “योद्धा मल्लयुद्ध करते हैं सत्य है, पर राजकुमारों के बीच शक्ति-परीक्षण के लिए मल्लयुद्ध का होना उचित नहीं है । यदि तुम्हें मेरे बल की परीक्षा करनी है तो मेरे हाथ या पैर की अंगुली को झुकाओ । लेकिन श्रीकृष्ण हाथ या पैर की अंगुली को नहीं झुका सके । नेमि ने अपनी अंगुली से ही श्रीकृष्ण को झुका दिया । उन्हें उनकी शक्ति का परिज्ञान हुआ । जब नेमि के विवाह का उपक्रम किया गया तो श्रीकृष्ण ने षड्यन्त्र कर पशुओं को एक बाड़े में एकत्र कर दिया । जब बारात जूनागढ़ पहुँची तो नेमि जिन पशुओं का करुण क्रन्दन सुन विरक्त हो गये । उन्होंने दिगम्बरी दीक्षा धारण की और ऊर्जयन्त गिरि पर तपस्या करने चले गये। जब राजुल को नेमिजिन की विरक्ति का समाचार मिला तो मूर्छित होकर गिर पड़ी। वह सखियों के साथ गिरनार पर्वत पर जाने के लिए तैयार हो गयी । माता-पिता गुरुजनों ने बहुत समझाया पर वह नहीं मानी और दीक्षा लेकर तपश्चरण करने में संलग्न हो गई । इस प्रकार नेमिचरित रास उच्च कोटि का काव्य है । रचयिता : रचनाकाल - इस काव्य के रचयिता श्री भट्टारक ब्रह्मजीवन्धर हैं । ये भट्टारक सोमकीर्ति के प्रशिष्य एवं यमःकीर्ति के शिष्य थे । इनका समय वि० सं० १६ वीं शताब्दी है ।। ५५. नेमिनाथ वसन्त (कवि वल्ह) (बूचिराज) कवि वल्ह द्वारा रचित यह रचना भी पद्यात्मक है जिसमें २३ पद्य हैं । बसन्त ऋतु का रोचक वर्णन करने के बाद नेमिनाथ ने अकारण पशुओं को घिरा हुआ देखकर और सारथी से अतिथियों के लिए पशुओं के वध की बात सुनकर विरक्त हो रैवतक गिरि पर जाना वर्णित है । राजीमती का विरह एवं तपस्विनी के रूप में आत्मसाधना वर्णित है । इस प्रकार यह भी चरित्र प्रधान काव्य रचना है। १. तीर्थर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा, भाग-३, पृ० - ३८७ २. वहीं, भाग-४, पृ० २३३
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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