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________________ तीर्थङ्कर नेमिनाथ विषयक साहित्य रचयिता : रचनाकाल इस चरितकाव्य के रचयिता का नाम सूराचार्य है । यह ११वीं शताब्दी का रचित है। रचनाकाल वि० सं० १०९० (सन् १०३३ ई०) है। ३. नामेयनेमिद्विसधान एक दूसरी रचना भी प्राप्त होती है । इसका संशोधन कवि चक्रवर्ती श्रीपाल ने किया है जिसका समय १२ वीं शती है । ४. नेमिनिर्वाण (वाग्भट्ट प्रथम) नेमि निर्वाण काव्य १५ सर्गों में विभक्त है और तीर्थङ्कर नेमिनाथ का जीवन चरित अंकित है । २४ तीर्थङ्करों के नमस्कार के उपरान्त मूल कथा प्रारम्भ की गई है । कवि ने नेमिनाथ के गर्भ, जन्म, विवाह, तपस्या, ज्ञान और निर्वाण कल्याणकों का निरूपण सीधे और सरल रूप में किया है । कथावस्तु का आधार हरिवंशपुराण है । नेमिनाथ के जीवन की दो मर्मस्पर्शी घटनायें इस काव्य में अंकित हैं : ___ एक घटना राजुल और नेमि का रैवतक पर पारस्परिक दर्शन और दर्शन के फलस्वरूप दोनों के हृदय में प्रेमाकर्षण की उत्पत्ति रूप में है । दूसरी घटना पशुओं का करुण क्रन्दन सुन नेमि का विवाह त्यागना तथा बिलखती राजुल तथा आद्रनेत्र हाथ जोड़े उग्रसेन को छोड़ मानवता की प्रतिष्ठार्थ वन में तपश्चरण के लिये जाना है । इन दोनों घटनाओं की कथावस्तु को पर्याप्त सरस और मार्मिक बनाया गया है । कवि ने वसन्त वर्णन, रेवतक वर्णन, जलक्रीड़ा, सूर्योदय, चन्द्रोदय, सुरत, मदिरापान, प्रभृति काव्य विषयों का समावेश कथा को सरस बनाने के लिए किया है । कथावस्तु के गठन में एकान्विति का सफल निर्वाह किया गया है । पूर्वभवावलि के कथानक के हटा देने पर भी कथावस्तु में छिन्न-भिन्नता नहीं आती । यों तो यह काव्य अलंकृत शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है पर कथा गठन की अपेक्षा इसमें कुछ शैथिल्य भी पाया जाता है। कवि ने इस काव्य में नगरी, पर्वत, स्त्री-पुरुष, देवमन्दिर, सरोवर आदि का सहज-ग्राह्य चित्रण किया है । रस भाव योजना की दृष्टि से भी यह काव्य सफल है । श्रृंगार, रौद्र, वीर, और शान्त रसों का सुन्दर निरूपण किया है । विरह की अवस्था में किये गये शीतलोपचार निरर्थक प्रतीत होते हैं । ११वें सर्ग में वियोग श्रृंगार का अद्भुत चित्रण आया है । __ छन्द शास्त्र की दृष्टि से इस काव्य का सप्तम सर्ग विशेष महत्त्वपूर्ण है । जिस छन्द का नामांकन किया है कवि ने उसी छन्द में पद्य रचना भी प्रस्तुत की है । कवि कल्पना का धनी है । सन्ध्या के समय दिशायें अन्धकार से लिप्त हो गई थी और रात्रि में ज्योत्स्ना ने उसे १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ० ५२२
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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