SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास ९३. श्रीचन्द्रकेवलीचरित' : (शील सिंह गणि) इसमें श्रीचन्द्रकेवली का चरित्र अंकित है। यह ४ अध्याय काव्य है । इसमें क्रमशः ६१३, ७०५, ७२४, और ९६६ कुल ३००८ पद्य हैं। आकार की दृष्टि से यह महाकाव्य के समान जान पड़ता है । रचयिता : रचनाकाल चन्द्रकेवलीचरित के रचयिता शीलसिंहगणि हैं, जो तपागच्छीय जयानन्दसूरि के शिष्य थे। इन्होंने इस काव्य की रचना वि० सं० १४९४ (१४३७ ई०) में की थी । ३१ ९४. वस्तुपालचरित' : (जिन हर्ष गणि) वस्तुपालचरित में महामात्य वस्तुपाल का चरित्र वर्णित है । यह एक ऐतिहासिक चरितकाव्य है । रचयिता : रचनाकाल वस्तुपालचरित के रचयिता जिनहर्षगणि हैं, जो जयसुन्दरसूरि के शिष्य थे । ये जयसुन्दरसूरि सोमसुन्दरसूरि के प्रशिष्य और मुनिसुन्दरसूरि के शिष्य थे। ये तपागच्छ से संबद्ध थे । इन्होंने वस्तुपाल चरित की रचना वि० सं० १४९७ (१४४० ई०) में की थी । ९५. नागकुमारचरित : ( धर्मघर ) यह चरितकाव्य पुष्पदन्त के जयकुमारचरित के आधार पर लिखा गया है, जिसमें नागकुमार का चरित वर्णित है । ९६. श्रीपालचरित : (धर्मघर) इस चरितकाव्य में चम्पापुर के राजकुमार श्रीपाल का वर्णन किया गया है। एक षड्यन्त्र से श्रीपाल का राज्य छीन लिया गया था तथा कोढ़ियों में शरण पाने से उन्हें कोढ़ हो गया था । बाद में सिद्धचक्र के पाठ से उसका कोढ़ दूर हुआ । रचयिता रचनाकाल 1 नागकुमार चरित तथा श्रीपाल चरित के रचायता धर्मधर हैं । जिनरत्नकोश के अनुसार धर्मधर वृद्धतपागच्छीय विजयरत्नसूरि के शिष्य थे। कवि ने नागकुमार चरित में मूलसंघ सरस्वतीगच्छ के भट्टारक पद्मनन्दी शुभचन्द्र और जिनचन्द्र का उल्लेख किया है । अतएव इन्हें मूलसंघ के सरस्वती गच्छीय होना चाहिये । इन्होंने नागकुमार चरित की रचना वि० सं० १५११ (१४५४ ई०) में की थो १. हीरालाल हंसराज जामनगर, १९१५ ई० में प्रकाशित ३. हीरालाल हंसराज जामनगर, १९११ ई० में प्रकाशित ५. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० १७२ ७. तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-५८ २. जिनरलकोश, पृ० ३९६ ४. वस्तुपाल चरित प्रस्तावना पुष्पिका ६. जिनरत्नकोश, पृ० ३९७ ८. वही, भाग-४, पृ० ५८
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy