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________________ २५ जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास ६३. धन्यशालिभद्रचरित : (भद्र गुप्त) धन्यशालिभद्रचरित में श्रेणिक (बिम्बसार) और भगवान महावीर के समकालीन धन्यकुमार और शालिभद्र नामक दो श्रेष्ठि कुमारों का वर्णन किया गया है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में इन्हें प्रत्येक बुद्ध की श्रेणी में रखा गया है। रचयिता : रचनाकाल धन्यशालिभद्रचरित के रचयिता भद्रगुप्त हैं जो रुद्रपल्लीयगच्छ के देवगुप्त के शिष्य थे। इन्होंने इस काव्य की रचना वि० सं० १४२८ (१३७१ ई०) में की थी। ६४. जम्बूस्वामीचरित' : (जय शेखर सूरि) यह छः सर्गों वाला काव्य है । इसमें भगवान महावीर के अन्तिम गणधर और २४वें कामदेव जम्बूस्वामी का चरित वर्णित किया गया है । रचयिता : रचनाकाल जम्बूस्वामी चरित के रचयिता जयशेखरसूरि हैं । इन्होंने वि० सं० १४३६ (१३७९ ई०) में इस काव्य की रचना की है । ये अंचलगच्छ के विद्वान् थे । ६५. मलयसुन्दरीचरित : (जय तिलक सूरि) मलयसुन्दरीचरित ४ प्रस्तावों और ८२४ पद्यों का काव्य है । इसमें मलयसुन्दरी का बड़ा ही रोचक उपाख्यान वर्णित है । मलयसुन्दरी भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण से १०० वर्ष बाद उत्पन्न हुई थी। ६६. हरिविक्रमचरित' : (जय तिलक सरि) यह १२ सर्गों का महाकाव्य है । इसमें हरिविक्रम का जीवन चरित वर्णित हैं । ६७. सुलभाचरित : (जय तिलक सूरि) यह ८ सर्गों का महाकाव्य है जिसमें सुलभा का चरित निबद्ध है। सुलभा, भगवान महावीर के समय श्राविका संघ की प्रधान श्राविका थी, जो अपने सम्यक्त्व की दृढ़ता के लिये प्रसिद्ध थी। रचयिता : रचनाकाल ऊपर वर्णित तीनों चरितों के रचयिता जयतिलक सूरि हैं जो आत्मागच्छीय आचार्य थे । इनके समय की निश्चित जानकारी नहीं है किन्तु सुलभाचरित की प्राचीनतम प्रति वि० सं० १४५३ (१३९६ ई०) की मिलने के कारण उससे ये प्राचीन हैं।" १.जिनरलकोश, पृ०-१८८ ३.जिनरलकोश, पृ० १३२ ५.मलयसुन्दरी चरित, ८/८२४ ७.जिनरत्नकोश, पृ० ४४७ २.जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, गुजराती अनुवाद सहित १९१३ में प्रकाशित ४.देवचन्द्रलालभाई जैन पुस्तकोद्धार भाण्डागार (१९१६ ई० में प्रकाशित) ६.हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९१६ ई० में प्रकाशित
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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