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________________ जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास सं० १४१० (१३५३ ई०) में की थी । ५७. पार्श्वनाथचरित' : ( भाव देव सूरि) I यह आठ सर्गात्मक महाकाव्य है । इसके आठों सर्गों में क्रमशः ८८५, १०६५, १६२, २५४, १३, ६०, ८३६, ३९३ पद्य हैं । अन्त में ३० पद्यात्मक प्रशस्ति हैं। पंचम सर्ग से पार्श्वनाथ का चरित प्रारम्भ होता है। बीच-बीच में अवान्तर कथाओं का समावेश है जिनमें मुख्य रूप से धर्म का उपदेश दिया गया है। रचयिता : रचनाकाल पार्श्वनाथचरित काव्य के रचयिता "भावदेवसूरि" हैं । ग्रन्थ प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि खाण्डिलगच्छ के चन्द्रकुल में भावदेवसूरि नामक एक विद्वान् हुए हैं। जिनके तीन शिष्य थे - १. विजयसिंहसूरि, २ . वीरसूरि, और ३. जिनदेवसूरि । पार्श्वनाथचरित के रचनाकार भावदेवसूरि इन तीनों में से जिनदेवसूरि के शिष्य थे । पार्श्वनाथचरित की रचना कवि ने वि० सं० १४१२ (१३५५ ई०) में पत्तन नामक नगर में की थी । अतः भावदेवसूरि १४ वीं शती के विद्वान हैं। ५८. नेमिनाथचरित: (कीर्ति राज उपाध्याय) है यह १२ सर्गों में विभक्त महाकाव्य है । इसकी भाषा प्रौढ़ किन्तु मधुर एवं प्रसादगुण युक्त । इस काव्य में अन्य काव्यों की तरह पूर्वजन्मों का विवेचन नहीं किया गया है । द्वितीय सर्ग का प्रभात काल का वर्णन एवं अष्टम सर्ग का षड्ॠतुओं का वर्णन अत्यन्त मनोहारी है । रचयिता : रचनाकाल इस काव्य के रचयिता खरतरगच्छीय श्री कीर्तिराज उपाध्याय हैं । इन्होंने नेमिनाथचरित की रचना वि० सं० १४१५ (१३५८ ई०) में की थी । ५९. वरांगचरित: (वर्धमान भट्टारक ) वरांगचरित त्रयोदश सर्गात्मक महाकाव्य है । इसमें श्रीकृष्ण और नेमिनाथ के समकालीन वरांगकुमार के धीरोदत्त जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है । विभिन्न घटनाओं को नाटकीय रूप प्रदान कर कवि ने उन्हें सजीव बना दिया है। I रचयिता : रचनाकाल वरांगचरित काव्य के रचयिता वर्धमान भट्टारक हैं जो मूल संघ बलात्कारगण सरस्वतीगच्छीय आचार्य थे ।७ बलात्कारगण में दो भट्टारकों के नाम मिलते हैं- प्रथम न्यायदीपिका के रचयिता . १. अन्तरिक्षरजती हदीश्वरब्रह्मवक्त्रशशिसंख्यवत्सरे । विक्रमे शुचितयो जयातिथौ शान्तिनाथ चरितं व्यरच्यत । । २. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला बनारस वी०नि० सं० २४३८ में प्रकाशित ४. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला भावनगर, वी० नि० सं० २४४० में प्रकाशित ६. रावजी सखाराम दोशी सोलापुर, १९२७ ई० में प्रकाशित २३ शान्तिनाथचरित प्रशस्ति पद्य, १७ ३. पार्श्वनाथचरित, प्रशस्ति पद्य, ४-१४ ५. . नेमिनाथचरित्र, १२/५३ ७. जिनरलकोश, पृ० ३४२
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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