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________________ १४ श्रीमद्वाग्भटविरचित नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन में धार्मिकता का अभाव है । अतः जैन दर्शन तथा आचार का प्रतिपादन इसमें नहीं के बराबर है । शास्त्रीय नियमों और काव्यत्व की दृष्टि से उत्कृष्ट है । रचयिता : रचनाकाल ___ सनत्कुमारचरित के रचयिता जिनपाल उपाध्याय हैं । ये चन्द्रकुल की प्रवरवज शाखा के जिनपतिसूरि के शिष्य थे । इन्होंने १२०५ ई० में षट्स्थानवृत्ति की रचना की थी। अतएव इनका समय १३ वीं शताब्दी का प्रारम्भ होना चाहिए । २३. पार्श्वनाथचरित': (माणिक्य चन्द्र सूरि) पार्श्वनाथचरित १० सर्गात्मक महाकाव्य है । इसमें ६७७० श्लोक प्रमाण हैं । इसमें अंगीरस शान्त है । अन्य रसों का अंगरूप में उपयोग हुआ है । काव्य अनुष्टुप् छन्द में निबद्ध है । यह काव्य अभी तक अप्रकाशित है । २४. शान्तिनाथचरित': (माणिक्य चन्द्र सूरि) यह चरित ८ सर्गात्मक काव्य है । जिसमें शान्तिनाथ भगवान् का चरित निबद्ध है। इसकी भाषा अत्यन्त सरल है। रचयिता : रचनाकाल उपर्युक्त दोनों चरित काव्यों के रचयिता माणिक्यचन्द्रसूरि हैं, जो राजगच्छीय नेमिचन्द्र के प्रशिष्य और सागरचन्द्र के शिष्य थे। ये महामात्य वस्तुपाल के समकालीन थे। इन्होंने पार्श्वनाथ की रचना वि० सं० १२८६ (सन् १२२९ ई०) में की थी। इससे इनका समय १३वीं शताब्दी है। २५. संघपतिचरित': (उदयप्रभ सूरि) इस काव्य का दूसरा नाम धर्माभ्युदय भी है। महामात्य वस्तुपाल ने गिरनार की तीर्थयात्रा के लिए एक संघ निकाला था। उसके वस्तुपाल संरक्षक या संघपति थे। इसी को आधार मानकर कवि ने इसका नाम संघपतिचरित रखा था । धर्माभ्युदय नाम भी प्रचलित है । इसमें धर्म के अभ्युदय के लिए किये गये वस्तुपाल के कार्य वर्णित हैं। रचयिता : रचनाकाल ___ संघपतिचरित काव्य के रचयिता श्री उदयप्रभसूरि हैं, जो आचार्य विजयसेनसूरि के शिष्य थे। उन्होंने १२३३ ई० के पूर्व ही इस काव्य की रचना की थी। १.जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ०-३९५ (मो० द० देसाई) २.हस्तलिखित प्रति शान्तिनाथ भण्डार खम्भात में है। ३.ताड़पत्रीय प्रति हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मन्दिर पाटन में है। ४.जिनरलकोश, पृ०-२४५ ५.धर्माभ्युदय महाकाव्य नाम से सिंधी जैन शास्त्र शिक्षापीठ, भारतीय विद्या भवन, बम्बई से वि० सं० २००५ में प्रकाशित ६.द्रष्टव्य - धर्माभ्युदय महाकाव्य,श्री कनैयालाल मा० दवे लिखित ग्रन्थ परिचय, पृ०-४०
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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