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________________ २२६ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन जाता है । बंधे हुए सभी कर्मों का छूट जाना मोक्ष है । उक्त सात तत्वों के विवेचन के अतिरिक्त नेमिनिर्वाण में आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल इन चतुर्विध ध्यानों का, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पंच पापों का, कर्मसिद्धान्त बाह्य और आभ्यन्तर तपों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है । प्रसंगतः जैनदर्शन के मूलभूत सिद्धान्त अनेकान्त का भी प्रतिपादन किया गया है । इस दार्शनिक अनुशीलन से नेमि निर्वाण अपने उद्देश्य में सर्वथा सफल प्रतीत होता है। क्योंकि उसका ध्येय मोक्ष पुरुषार्थ है। ____ तत्कालीन संस्कृति की अमिट छाप साहित्य पर पड़ना स्वभाविक है । नेमिनिर्वाण में भौगोलिक परिवेश में अनेक द्वीप, पर्वत, नदियाँ, वन, उद्यान, वृक्ष, वनस्पतियाँ, पुष्प, पशु-पक्षी, देश, जनपद, नगर, ग्राम आदि का विस्तृत विवेचन हुआ है । नगर में भवनों के निमाण की कला का स्थापत्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है। . राजनीतिक परिस्थियाँ भी नेमिनिर्वाण में प्रतिबिम्बित हुई है । राजा और मन्त्री का उत्तराधिकार प्रायः ज्येष्ठ पुत्र को ही मिलता था, किन्तु कभी कभी यह नियम छोड़ भी दिया जाता था । राजा समुद्रविजय ने वसुदेव का भक्तिभाव देखकर उनके पुत्र श्रीकृष्ण को युवराज बना दिया था । राजा के अनेक अधिकारी एवं सेवक होते थे । राजा और प्रजा के सम्बन्ध अत्यन्त मधुर थे । न्याय और दण्ड व्यवस्था सुदृढ थी तथा देश की रक्षा के लिए एक सैन्य विभाग होता था । . नेमिनिर्वाण में सामाजिक स्थिति के अन्तर्गत परिवार, विवाह, भोजनपान, आजीविका के साधन, आभूषण, शिक्षा, संस्कार, मनोरंजन स्वप्न एवं शकुनविचार आदि का उल्लेख हुआ है। उस समय सामान्यतः शाकाहारी भोजन ही किया जाता था, किन्तु राजा आदि मांसाहारी भोजन भी करते थे । भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में नेमिनिर्वाण में प्रतिपादित संस्कृति का ज्ञान आवश्यक एवं अविस्मरणीय है । इससे हम मध्यकालीन भारतीय संस्कृति को अनायास ही जान सकते हैं। ___ सभी कवियों पर अपनी पूर्ववर्ती कविपरम्परा का प्रभाव अवश्य पड़ता है । क्योंकि कवि अपने पूर्व कवियों की परम्परा का अध्ययन अवश्य करता है । महाकवि वाग्भट भी इसके अपवाद नहीं हैं । उनके काव्य में जहाँ पूर्वकाव्यों का शैलीगत, भावात्मक शाब्दिक या आर्थिक अनुकरण पाया जाता है, वहाँ पश्चाद्वर्ती कविपरम्परा (विशेषतया जैन कवि परम्परा) को उनका अवदान भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। नेमिनिर्वाण महाकाव्य के उक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि भारत की साहित्यिक साधना ने भाषाविषयक विवादों को छोड़कर तथा संस्कृत को आधार बनाकर सम्प्रदायगत संकीर्ण बन्धनों को तोड़ दिया था । वैदिक और बौद्ध सम्प्रदायों के साथ-साथ जैनों ने भी संस्कृत की अनुपम सेवा करके एक ऐश्वर्यशाली परम्परा की स्थापना की थी । महाकवि वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण के इस समीक्षात्मक अध्ययन से संस्कृत साहित्य की अवश्य ही श्रीवृद्धि हो सकेगी।
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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