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________________ जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास है। जैन संस्कृत चरित काव्यों में यह उत्तम महाकाव्य है । इसमें १८ सर्गों में १६९७ पद्य हैं। पूर्वजन्म आख्यान प्रधान होते हुये भी इस महाकाव्य में जैनेतर महाकाव्यों की शैलियाँ अपनाई गई हैं । काव्य अत्यन्त सरस बन पड़ा है । रचयिता : रचनाकाल चन्द्रप्रभ चरित के रचयिता वीरनन्दि हैं, जो नन्दिसंघ के देशीगण के आचार्य थे । इनके गुरु का नाम अभयनन्दि और गुरु के गुरु का नाम गुणनन्दि था । महाकवि वादिराज ने पार्श्वनाथ चरित (१०२५) में चन्द्रप्रभचरित के रचयिता के रूप में इनका स्मरण किया है। इससे ये इनके पूर्ववर्ती हैं । डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने इनका समय ९५०-९९९ ई० माना है ।। ७. प्रद्युम्नचरित* : (महासेन) इस चरितकाव्य में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जीवन-चरित गुम्फित है । इसमें १४ सर्ग हैं । काव्य में कहीं-कहीं गेयता दिखाई पड़ती है । इस महाकाव्य में गीतगोविन्द की झलक देखी जा सकती है। रचयिता : रचनाकाल प्रद्युम्नचरित के रचयिता महासेन लाट वर्गन (लाडवागड) संघ के आचार्य थे, ये चारुकीर्ति के शिष्य तथा राजा भोजराज के पिता सिंधुराज के महामात्य पप्पट के गुरु थे ।' डा० नेमिचन्द्र शास्त्री प्रद्युम्नचरित का रचना काल ९७४ ई० के आसपास मानते हुये इन्हें १०वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रखते हैं । डा० रामजी उपाध्याय ने इनका रचनाकाल दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी के सन्धिकाल को माना है।" ८. वर्धमान चरित : (असग) वर्धमानचरित को महावीर चरित या सन्मति चरित भी कहा जाता है। इसका कथानक गुणभद्र के उत्तरपुराण के ७४वें पर्व से लिया गया है । विविध अलंकारों एवं छन्दों का प्रयोग इस काव्य में देखने को मिलता है। इसमें १८ सर्ग हैं अतः यह महाकाव्य की श्रेणी में पूर्णरूप से आता है । इसकी अवान्तर कथाओं में मारीच, विश्वनन्दि, हरिषेण, सूर्यप्रभ आदि की कथाओं का प्रयोग हुआ है। ९. शान्तिनाथचरित' शान्तिनाथचरित भी एक महाकाव्य है । इसका दूसरा नाम शान्तिनाथपुराण भी है । इसमें १.जिनरलकोश, पृ० ११९ । २. पार्श्वनाथचरित, १/३० ३.संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ०७७ ४.माणिक्यचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला बम्बई से १९१७ ई० में प्रकाशित ५.जिनरलकोश, पृ०-२६४ ६.तीकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-३, पृ०-५७ ७.संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिवस, भाग-१, पृ०-४१० ८.श्री पार्श्वनाथ जिनदास फडकुले द्वारा प्रकाशित होकर १९३१ ई० में सोलापुर से प्रकाशित । हि० अनु० सहित मु० कि० कापडिया द्वारा सूरत से १९१८ में प्रकाशित ९.मराठी अनुवाद सहित श्री पा० जि० फडकुले द्वारा सोलापुर से प्रकाशित
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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