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________________ २१० श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन स्वप्न तथा उनके फल : नेमिनिर्वाण के द्वितीय सर्ग में शिवा देवी ने सोलह स्वप्न देखे जो क्रमशः इस प्रकार हैं - हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी, मालाएँ, सूर्य, चन्द्र, मीनयुगल, कलश, सरोवर, विशाल सागर, ऊँचा सिंहासन, विमान, सुसज्जित भवन, रत्नों की राशि तथा निर्धूम अग्नि । रानी ने इन स्वप्नों का फल अपने पति राजा समुद्रविजय से पूछा तो उन्होने आनन्दित होते हुये कहा - हे देवि! तुम शीघ्र ही पुत्र रत्न उत्पन्न करोगी ।। भावी पुत्र गज के समान भूरितरदान से युक्त, बैल के समान धुरी धारण करने वाला, सिंह के समान तेजस्वी, लक्ष्मी के स्वयंवर में माल्यार्पण के समान, चन्द्रमा की किरणों के समान दर्शनीय, सूर्य के समान प्रतापी, मीन और कलश से चिहिनत चरण कमलों वाला, निर्मल जलाशय की तरह पवित्र, समुद्र के समान अत्यन्त गम्भीर, यदुवंश के उच्च सिंहासन को सुशोभित करने वाला, रत्नों के समूह की तरह चमकती हुई शरीर की कान्तिवाला तथा जो अग्नि की तरह गाहन कर्मों को आक्रान्त कर देने वाला है। इस प्रकार राजा समुद्रविजय ने देखे गये विभिन्न स्वप्नों के परिणामों को बतलाकर कहा कि सज्जनों के स्वप अनपेक्षित अर्थ वाले नहीं होते अर्थात् अवश्य ही सफलीभूत होते इस प्रकार नेमिनिर्वाण में प्रतिपादित संस्कृति के विवेचन से आज से लगभग ९०० वर्ष से पूर्व की संस्कृति का चित्र उपस्थित होता है । भारतीय संस्कृति के सर्वाङ्ग अध्ययन के लिए इसकी उपादेयता असंदिग्ध है। १. नेमिनिर्वण, २/४९-५९ २. वही, २/६० ३. वहीं, ३/३८,३९ ४. वही, ३/४०-४३
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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