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________________ २०२ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन वप्र : (मिट्टी की चारदीवारी) नगर के चारों और परिखाओं का खोदना एवं वप्र भूमि का निर्माण एक संयुक्त कार्य है। कौटिल्य के अनुसार खाई से चार दण्ड की दूरी पर छः दण्ड (चौबीस हाथ) ऊँचा, नीचे से मजबूत, ऊपर से ऊँचाई से दुगुना विस्तृत वप्र (मिट्टी की चारदीवारी) बनवाये । इन वनों को बनाते समय बैलों और हाथियों द्वारा भली - भाँति खोदवाकर और दबवाकर खूब मजबूत कर दे । उस पर कटीली झाड़ियाँ और विषैली लताएं लगा दे । नेमिनिर्वाण में वप्र का उल्लेख अनेक स्थानों पर हुआ है ।' सभा : (सदस्) सभा के दो प्रधान उपकरण थे स्तम्भ तथा वेदियाँ । सभा एक प्रकार का द्वार भित्ति आदि से विरहित स्तम्भ प्रधान निवेश होता था । प्राचीन सभा भवन की यह रूप रेखा सदा वर्तमान रही । बाद में द्वारों और भित्तियों की कल्पनाओं से इन भवनों को अन्य भवनों के सादृश्य में लाने की परम्परा पल्लवित हुई । यह परम्परा राजनीति से प्रभावित थी । अतः सभा राजनीतिक निवेश का एक प्रधान अंग थी । जिसको दरबार के नाम से पुकारा जाता है । नेमिनिर्वाण में सदस शब्द का उल्लेख इस प्रकार हआ है - "इसके बाद राजा समुद्रविजय की सभा में अनेकदिशाओं से आये हुए राजाओं के द्वारा पूजित उस राजा ने आकाश से पृथ्वीतल पर उतरते हुए देवांगनाओ को आश्चर्यचकित दृष्टि से देखा" । वर्ण और जातियाँ : जैन धर्म में जातिवाद तथा वर्णवाद के प्रति विरोध की भावना दृष्टिगत होती है । आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण में चार जातियों की मान्यता को अहेतुक बताते हुये किसी भी जाति को निन्दनीय नहीं माना है । जैन धर्म अपनी समन्वयात्मक वृत्ति के कारण वैदिक संस्कृति के साथ अत्यन्त मेल से रहा । नेमिनिर्वाण में भी इसी परंपरा का निर्वाह किया गया है । वर्णों में चारों वर्गों को स्वीकारा है । जातियों में यदु (यादव)६ अप्सरा", नट", किन्नर', आयरि सामंतर, मलेच्छ'२, देव, दानव गन्धर्व, यक्ष आदि नाम आये हैं । परिवार : परिवार सार्वभौमिक समाज है । यह समाज काम की स्वाभाविक दृष्टि को लक्ष्य में रखकर यौन सम्बन्ध और सन्तानोत्पत्ति की क्रियाओं को नियन्त्रित करता है । यह शिशुओं १. भारतीय स्थापत्य, पृ०१०२ ४. वही, २/१ ७. वही, ५/३९, ५/५६ १०. वही, ७/२ १३. वही,१५/३२ २. कौटिल्य अर्थशास्त्र, २/३ ५. पद्मपुराण,११/१९४, २०३ ८. वहीं, ५/५६ ११. वही, ११/२९ . ३. नेमिनिर्वाण, १/३५, ४७ ६. नेमिनिर्वाण,१/३१,६/५० ९.वही, ६/२८ १२. वही,१५/६७
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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