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________________ नेमिनिर्वाण : दर्शन एवं संस्कृति - दर्शन १८९ इस प्रकार नेमिनिर्वाण काव्य में महाकवि वाग्भट ने आत्मज्ञान के लिए आवश्यक अजीव तत्त्व बन्ध के कारण रूप आस्रव, दुःखरूप बन्ध और मोक्ष के कारण रूप संवर तथा निर्जरा का वर्णन किया है । यह समग्र वर्णन मोक्ष के कारणरूप सम्यक् श्रद्धा के लिये किया गया है । ध्यान : एकाग्र चिन्ता के निरोध को ध्यान कहते हैं । यद्यपि ध्यान की स्थिति उत्तम संहनन वाले को अन्तर्मुहूर्त तक ही होती है। किन्तु ध्येय बदल जाने पर भी ध्यान की भावना चलती रहती 1 है । इसलिये बदलते हुये ध्येय की भावना के साथ ध्यान अधिक समय तक भी रह सकता है पं० टोडरमल ने लिखा है कि “एक का मुख्य चिंतन होय अर अन्य चिंता रुके, ताका नाम ध्यान है । जो सर्व चिन्ता रुकने का नाम ध्यान होय तो अचेतनमन हो जाये । बहुरि ऐसी भी विविधता है जो संतान अपेक्षा नाना ज्ञेय का भी जानना होय, परन्तु यावत् वीतरागता रहे रागादिक करि आप उपयोग को भ्रमावे नांही तावत् निर्विकल्प दशा कहिये है" । गति को अपेक्षा जीव के नारकीय, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवता ये चार भेद करते हुए उनकी प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में नेमिनिर्वाण में ध्यानों का विवेचन हुआ है । ध्यान के चार भेद होते हैं - आर्त, रौद्र, धर्म, शुक्ल । इनमें अन्तिम दो ध्यान मोक्ष के कारण हैं । धर्मध्यान परम्परा से तथा शुक्ल ध्यान साक्षात् मोक्ष का कारण है। इनमें से प्रारम्भ के दो ध्यान अप्रशस्त हैं और संसार के कारण हैं । - (१) आर्तध्यान दुःख के अनुभव के समय चिन्ता का होना आर्तध्यान है । यह अनिष्ट संयोग इष्ट वियोग, पीड़ा तथा निदान से होता है। विष, कांटा, शत्रु आदि अप्रिय वस्तुओं का समागम होने पर तज्जन्य पीड़ा से व्याकुल होकर उस वस्तु के वियोग के लिये सतत चिन्ता करना अनिष्ट संयोगज आर्तध्यान है । यह ध्यान द्वेष भाव से होता है इष्ट पदार्थ का ( पुत्र, धन, स्त्री) वियोग होने पर उसके संयोग के लिये बारम्बार विचार करना सो इष्ट वियोगज नाम का आर्तध्यान है । रोग जनित पीड़ा होने पर उसे दूर करने के लिए रात-दिन सतत चिन्ता करते रहना सो वेदना जन्य आर्तध्यान है । भोगों की तृष्णा से पीड़ित होकर रात दिन आगामी भोगों को प्राप्त करने की ही चिन्ता बनी रहना निदान आर्तध्यान है ।' आर्तध्यान तिर्यंच गति का कारण होता है । 1 (२) रौद्र ध्यान रौद्र का अर्थ है निर्दयता- क्रूरता । निर्दय, या क्रूर परिणामों से होने वाले ध्यान को रौद्रध्यान कहते हैं । यह हिंसा, असत्य, चोरी और विषयों के संरक्षण के भाव से अविरत और १. उत्तमसंहनन स्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमान्तर्मुहूर्तात् । । २. मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० २११ ४. आर्त-रौद्र-धर्म-शुक्लानि । परेमोक्षहेतू ।। तत्त्वार्थ सूत्र २८-२९ - तत्त्वार्थसूत्र ९/२७ ३. नेमिनिर्वाण, १५/५६-६१, ६५ ५. तत्त्वार्थसूत्र ९/३०-३३
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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