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श्री अनिरुद्ध कुमार शर्मा द्वारा मेरठ विश्वविद्यालय की पी एच डी. उपाधि हेतु प्रस्तुत "श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन'' नामक शोध प्रबन्ध का सम्यक् परीक्षण किया है और मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि शोध प्रबन्ध के लेखक अनिरुद्ध कुमार शर्मा ने शोध के लिए निर्धारित मापदण्डों को ध्यान में रखते हये शोध सामग्री का उत्तम रीति से संयोजन किया है। इसमें शोध के लिए आवश्यक प्राचीन स्रोतों एवं नवीनतम शोध खोज का समावेश है। शोध के क्षेत्र में लेखक का यह मौलिक अवदान है। इसमें जिन तथ्यों की शोध खोज की गई है उससे संस्कृत चरितकाव्य साहित्य के अनुसन्धान को एक नई दिशा मिलती है तथा विद्वान लेखक की तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक दृष्टि का पता चलता है। भाषा प्राञ्जल और प्रभावशाली है। शोध-प्रबन्ध प्रकाशन के योग्य है।
डॉ० कमलेश कुमार जैन
जैन दर्शन विभागाध्यक्ष संस्कृत विद्या एवं धर्मविज्ञान संकाय
का०हि०वि०वि०, वाराणसी
श्री अनिरुद्ध कुमार शर्मा द्वारा प्रस्तुत संस्कृत शोध प्रबन्ध का मूल्यांकन की दृष्टि से आद्योपान्त अध्ययन किया गया। शोधार्थी का परिश्रम और प्रयास सराहनीय है। जैन साहित्य और संस्कृति के अगाध सागर के इस रत्न को जन सामान्य के लिए सुलभ बनाकर न केवल जैन धर्म की बल्कि संस्कृत साहित्य की भी श्री वृद्धि की है।
_ पूरा शोध प्रबन्ध गहन और सूक्ष्म अध्ययन का सुफल है। अनुसन्धाता का भाषा एवं विषय पर अधिकार हैं नये तथ्यों को उद्घाटन और विश्लेषण की क्षमता है। प्रबन्ध की भाषा में गति
और प्रवाह के साथ रोचकता भी है। तथ्यों के प्रतिपादन की शैली में पूर्णता, स्पष्टता, तथा मौलिकता है इसलिए प्रबन्ध प्रकाशन के योग्य भी है। प्रस्तुत शोध कार्य जैन धर्म और संस्कृत साहित्य के लिए एक नई देन है। सनातन धर्म एवं जैन धर्म की पारस्परिक एकता के अध्ययन के लिए दिशा निर्देश है। शोधार्थी का यह सर्वथा मौलिक कार्य जैन साहित्य के ज्ञान का एक प्रमुख साधन
डॉ० श्री निवास मिश्र रीडर एवं अध्यक्ष
संस्कृत-विभाग धर्म समाज कालेज अलीगढ़