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________________ १७८ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन रति क्रीडा नेमिनिर्वाण में मदिरापान से मस्त हुये यादवों की रति क्रीडा का वर्णन हुआ है जो इस प्रकार है : रतिक्रीडा के समय प्रियतम दृढ़ आलिङ्गन से कांपती हुये भुजाओं वाली कोई वधू प्रथम आलिङ्गन को करने में समर्थ नहीं हुई । गाढ आलिङ्गन के कारण रतिक्रीडा के परिश्रम से उत्पन्न पसीना, गिरते हुये मणिहार चूर्ण की तरह प्रियतम युगल के शरीर पर शोभायमान होने लगा। अधरोष्ठ दंश से विकसित मुख में प्रवेश करते हुये प्रियाओं के दाँतों की कान्ति वाले युवक रतिक्रीडा के समय साक्षात् निर्मल रस को पीते हुये की तरह शोभायमान होने लगे। इस प्रकार नेमिनिर्वाण काव्य में महाकाव्य के सभी वर्ण्य विषयों का मनोरम वर्णन किया गया है। १. उपगूहतः प्रियतमस्य ढूंढ प्रथमानवेपथु विहस्तभुजा । परिरम्भमग्रमणितं न वधूरशकद्विधातुमपरा सुरते ।। सुरतत्रमप्रभववारिलवप्रकरो रराज मिथुनस्य तना । । निबिडोपगृहनवशेन दलमणिहार चूर्ण इव कीर्णकणः ।। अधरौष्ठदंशविकसद्वदनप्रविशप्रिया दशनराजिरुचः । तरुणा विरेजुरमलं सुरते रसमापिबन्त इव मूर्तिधरम् । - मिनिर्वाण १०/१८-२०
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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