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________________ १६२ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन राक्षस) होने पर भी देवताओं का भक्त था । इस विचित्र राजगति को कौन जान सकता है । प्रयोग के अन्य स्थल - प्रथम सर्ग - १९, ७५ परिसंख्या : ___ कोई पूछी गई या बिना पूछी गई बात उसी प्रकार की अन्य वस्तु के निषेध में पर्यवसित होती है, वह परिसंख्या अलंकार है । वाग्भट ने द्वारावती का वर्णन करते हुये कहा है कि प्रकोपकम्पाधरबन्धुराभ्यो भयं वधूभ्यस्तरुणेषु यस्याम् । कर्पूरकालेयकसौरभाणां प्रभञ्जनः प्रौरगृहेषु चौरः ।। (जिस नगरी में क्रोध से कांपते हुये अधरों से बन्धुर बधुओं से भय को प्राप्त कर कपूर और कालेयक केशर की हवायें नगर निवासियों के घरों में चोर बन गई थी ।) अर्थात् इस द्वारावती नगरी में कोई चोर नहीं था, चोर यदि कोई था तो वह वायु ही था जो नित्य सुन्दरियों के मुख से सुगन्धि को चुरा लेता था । प्रयोग के अन्य स्थल - एकादश सर्ग-१३ उदाहरण : जहाँ प्रस्तुत को अप्रस्तुत द्वारा उदाहरण देकर दिखाया जाता है वहाँ उदाहरण अलकार होता है । यथा - यदुयोषितां विशदमद्यपयः प्रतिबिम्बितानि वदनानि पुरः । ___ रभसेन पानरसिकानि बभुश्चषकोदरेषु पतितानि यथा ।।। यादवों की नायिकाओं के स्वच्छ मधु से प्रतिबिम्बित मुखपात्रों में गिरे हुये पान रसिकों के समान मालूम पड़ रहे थे। यहाँ कवि ने यथा शब्द द्वारा उदाहरण अलंकार की योजना की है । सहोक्तिः 'सहोक्ति' वह अलंकार है, जहाँ एकपद 'सह' (साथ) अर्थ के सामर्थ्य से दो अर्थों का वाचक होता है । यथा- नेमिनिर्वाण में 'सह' शब्द के नियोजन द्वारा कवि ने एक ही शब्द को दो अर्थों का बोधक कहा है । यथा - अथसलिलविलासं यादवानामुदारैः सह निजनिजदारैस्तत्र वीक्ष्येव रम्यम् । दिनपतिरपि खिन्नः खं व्यतीत्यातिमात्रं, करकलितदिनश्रीः सागरान्तं जगाम ।। इस प्रकार उदारचेता यादवों द्वारा अपनी-अपनी नायिकाओं के साथ की गई मनोरम जल-क्रीड़ा को देखकर दुःखी सूर्यदेव भी अति विस्तृत आकाश का अतिक्रमण कर और किरणों द्वारा दिन की शोभा बढ़ाकर सागर पर्यन्त चला गया । १. नेमिनिर्वाण, १/४२ २. वही, १०/१० ३. वही, ८/८०
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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