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________________ १३० श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन अथो रथाद्यावदियेष नेमिस्तत्रोत्तरीतुं तरुणार्कतेजसा । शुश्राव तावत्स विवाहयज्ञे बद्धस्य शब्दं पशुसंचयस्य ।। श्रुत्वा तमार्तध्वनिमेकवीरः स्फारं दिगन्तेषु स दत्तदृष्टिः । ददर्श वाटं निकटे निषण्णः खिन्नाखिलश्वापदवर्गगर्भम् ।। तं वीक्ष्यपप्रच्छ कृती कुमारः स्वसारथिं मन्मथसारमूर्तिः । किमर्थमेते युगपन्निबद्धाः पाशैः प्रभूताः पशवो रटन्तः ।। श्रीमन्विवाहे भवतः समन्तादभ्यागतस्य स्वजनस्य भुक्त्यै । करिष्यते पाकविधेर्विशेष एषां वसाभिः स तमित्युवाच ।। श्रुत्वा वचस्तस्य स वश्यवृत्तिः स्फुरत्कृपान्तः करणः कुमारः । निवारयामास विवाहकर्माण्यधर्मभीरुः स्मृतपूर्वजन्मा ।। तरुणसूर्य के तेज के साथ कुमार नेमि ने रथ से जैसे ही उतरना चाहा वैसे ही उसने विवाह मण्डप में बन्धे हुये पशुओं के समूह की आवाज को सुना । अतिशय वीर नेमि ने उस आर्तध्वनि को सुनकर दिशाओं में दृष्टि डालकर समीप में ही व्याकुल पशुओं के समूह को देखा । कामदेव के समान आकृति वाले विद्वान् कुमार ने उस पशु-समूह को देखकर अपने सारथी से पूछा कि पाशों से बन्धे हुये रुदन करते हुये ये पशु एक साथ क्यों बाँधे गये हैं? सारथी ने उनसे कहा श्रीमान् जी ! आपके विवाह में चारों तरफ से आये हुये आत्मीय जनों के भोजन के लिये इनकी वसा से विशेष तरह का भोजन बनाया जायगा । उसके वचनों को सुनकर जितेन्द्रिय कृपालु अन्तःकरण वाले एवं अधर्म भीरु उस कुमार ने पूर्वजन्मों का स्मरण करके विवाह कार्य को रोक दिया । अद्भुत रस : "अद्भुत” वह रस है जिसे विस्मय के स्थायी भाव का अभिव्यंजन कहा करते हैं । इसका आलम्बन अलौकिक वस्तु है । अलौकिक वस्तु के गुणों का संकीर्तन इसका उद्दीपन है । स्तम्भ, स्वेद, रोमाञ्च, गद्गदस्वर, संभ्रम, नेत्र-विकास, आदि-आदि इसके अनुभाव हैं। इसमें वितर्क, आवेग, संभ्रम, हर्ष, आदि व्यभिचारी भाव परिपोषण का काम करते हैं। नेमिनिर्वाण में आकाश से उतरती हुई देवांगनाओं के वर्णन में अद्भुत रस का समावेश हुआ है। निरम्बुदे नभसि नु विद्युतः क्वचिनु तारकाः प्रकटितकान्तयो दिवा । सविस्मयैरिति नितरां जनैर्मुहुर्विलोकिताः पथि पथि बद्धमण्डलैः ।।२ बादलरहित आकाश में क्या यह बिजलियाँ हैं अथवा प्रकट-कान्ति वाले तारे हैं । इस प्रकार आश्चर्य युक्त समूह बनाकर लोगों के द्वारा प्रत्येक मार्ग में निरन्तर देवांगनायें देखी गई। १.नेमिनिर्वाण,१३/१-५ २. नेमिनिर्वाण, २/२
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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