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________________ नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : रस १२७ औषधियों का लेपन शरीर ताप शान्ति के लिये क्षम नहीं है । शरीर ताप को शान्त करने के लिये तुम्हारा अंग स्पर्श ही एक मात्र उपादेय है । हे दीर्घनयने! तुम्हारे प्रति जो प्रेम है उसे मैं चाटुकारिता से तुमसे नहीं कह रहा हूँ किन्तु रति भवन की भित्ति पर तुम्हारी जो आकृति अंकित है वह कह देगी कि मेरे कथन में कितना तथ्यांश है । आगे नायिका का कृत्रिम कोप देखिये कितना सजीव है “अवलोक्य कापि पतिमागतं पुरः सहसैव दुर्वहनितम्बमण्डला । विनयान्वितापि न शशाक सत्वरं परिहर्तुमासनमधीरलोचना ।।। दृढमासजेरुरसि वक्रमर्पयेमणितं च पूर्वगुणितं प्रकाशयः प्रियसगंमेष्विति सखीभिरीरिता कृतकं प्रकोपमकरोन्नवा वधूः ।। दुर्वह नितम्ब वाली नायिका, विनयान्वित होने पर भी नायक को पास में आया हुआ जानकर भी अपना आसन न छोड़ सकी । शयन कक्ष में पति के आने पर उसके मुख से अनायास ही दूसरी नायिका का नाम सुन लेने से शरीर दाह के साथ कमलिनियों से निर्मित शय्या को नायिका ने छोड़ दिया । "प्रिय संग न होने से उसके हृदय पर दृढतापूर्वक अपने मुख कमल को रख देना, पहले सोची हुई बातों को कह डालना इस प्रकार सखियों द्वारा कहे जाने पर नव वधुओं ने कृत्रिम क्रोध प्रकट किया । इस प्रकार कवि ने संयोग श्रृंगार का बड़ा ही सांगोपांग चित्रण किया है। विप्रलंभ (वियोग) श्रृंगार :____ वियोग श्रृंगार का चित्रण बड़ा ही रोचक बन पड़ा है । उग्रसेन की पुत्री राजीमती नेमि को रैवतक पर्वत पर (चैत्रमास में) क्रीड़ा करते हुये देखती है और उसके लावण्यपूर्ण शरीर को देखते ही अपने तन-बदन की सुध भूल जाती है और कामदेव के आधीन हो जाती है, जिसके कारण शरीर में दाह उत्पन्न हो जाता है । कवि ने राजीमती के विरह का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है । यथा : शीतैः शीतैश्चन्दनाद्यैरूपायैर्दिग्धोद्दाहं गाहमाना सुगात्री । सा निश्वासोत्कम्पिमुक्ताकलापा निद्रामुद्रां नोपलेभे निशायाम् ।। शून्यस्वान्ता सा वयस्यासु कान्ताः कुर्वाणासु प्रेमपूर्वाःप्रवृत्तीः । मूर्ध्नः कम्पेनोत्तरं तारनेत्रा चक्रे यद्वा चारुणा हुंकृतेम ।। नक्तं-नक्तं चन्द्रसंदर्शनेन प्राणेपूर्ध्वप्रस्थितेषु प्रकामम् । वेगादागादक्षिणी मीलयन्ती मूर्छा तस्याः पक्ष्मलाक्ष्याः सखीव ।। शीतल-शीतल चन्दन आदि उपायों के द्वारा और अधिक संताप को प्राप्त होती हुई १. नेमिनिर्वाण, ९/५२ २. नेमिनिर्वाण, ९/५४ १. नेमिनिर्वाण, ११/३-५
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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