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________________ १०० श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन - किंकरों ने भी अच्छी तरह पता लगाकर श्रीकृष्ण से सब बात ज्यों की त्यों निवेदन कर दी। किंकरों के वचन सुनकर चक्रवर्ती कृष्ण ने बड़ी सावधानी के साथ विचार करते हुये कहा कि आश्चर्य है, बहुत समय बाद कुमार नेमिनाथ का चित्त राग से युक्त हुआ है अब यह नवयौवन से सम्पन्न हुये हैं । अतः विवाह के योग्य हैं - इनका विवाह करना चहिए सो ठीक ही है । ऐसा कौन सुकर्मा प्राणी है जिसे दुष्ट काम के द्वारा बाधा नहीं होती हो ऐसा कहकर उन्होंने विचार किया उग्रवंशरूपी समुद्र को बढ़ाने के लिये चन्द्रमा के समान राजा उग्रसेन की जयावती रानी से उत्पन्न हुई राजीमती नाम की पुत्री है, जो सर्वाङ्ग सुन्दर है । विचार के बाद ही उन्होंने राजा उग्रसेन के घर स्वयं जाकर बड़े आदर से “आपकी पुत्री तीन लोक के नाथ भगवान मकुमार की प्रिया हो” इन शब्दों में उस माननीय कन्या की याचना की । इसके उत्तर में राजा उग्रसेन ने कहा कि - हे देव! तीन खण्ड में उत्पन्न हुये रत्नों के आप ही स्वामी हैं अतः यह कार्य आपको ही करना है आप ही इसके नाथ हैं, हम लोग कौन होते हैं? इस प्रकार उग्रसेन के वचन सुनकर श्रीकृष्ण महाराज बहुत ही हर्षित हुये । - तदनन्तर उन्होंने किसी शुभ दिन में वह विवाह का उत्सव कराना प्रारम्भ किया और सबसे उत्तम तथा मनोहर पाँच प्रकार के रत्नों का विवाह मण्डप बनवाया । उसके बीच में एक वेदिका बनवाई गई थी जो नवीन मोतियों की सुन्दर रंगोली से सुशोभित थी, मंगलमय सुगन्धित फूलों के उपहार तथा वृष्टि से मनोहर थी । उस पर सुन्दर नवीन वस्त्र ताना गया था और उसके बीच में सुवर्ण की चौकी रखी हुई थी। उसी चौकी पर नेमिकुमार ने वधु राजीमती के साथ गीले चावलों पर बैठने का नेग ( दस्तूर ) किया । दूसरे दिन वर के हाथ में जलधारा देने का समय था । उस दिन मायाचारियों में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण का अभिप्राय लोभ कषाय के तीव्र उदय से कुत्सित हो गया । उन्हें इस बात की आशंका हुई कि कहीं इन्द्रों के द्वारा पूजनीय भगवान नेमिनाथ हमारा राज्य न ले लें । उसी क्षण उन्हें विचार आया कि वे "नेमिकुमार वैराग्य का कुछ कारण पाकर भोगों से विरक्त हो जावेंगे” ऐसा विचार कर वे वैराग्य का कारण जुटाने का प्रयत्न करने लगे । उनकी समझ में एक विचार आया । उन्होंने बड़े-बड़े शिकारियों से पकड़वाकर अनेक मृगों का समूह बुलाया और उसे एक स्थान पर इकट्ठा कर उसके चारों ओर बाड़ी लगवा दी तथा वहाँ जो रक्षक नियुक्त किये गये उनसे कह दिया कि यदि भगवान् नेमिनाथ दिखाओं का अवलोकन करने के लिये आवें और इन मृगों के विषय में पूछें तो उनसे आप लोग साफ-साफ कह दें कि आप के विवाह में मारने के लिए चक्रवर्ती ने यह मृगों का समूह बुलाया है । 1 तदनन्तर जो नाना प्रकार के आभूषणों से देदीप्यमान हैं, जिनके सिर के बाल सजे हुए हैं, जो लाल कमलों की माला से अलंकृत हैं, घोड़ों के खुरों से उठी हुई धूलि के द्वारा जिन्होंने दिशाओं के अग्रभाग लिप्त कर दिये हैं और जो समान अवस्था वाले अतिशय प्रसन्न बड़े-बड़े
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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