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________________ आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें 49 स्वयं ही कर्मों को करने और भोगने वाला होने से कर्ता और भोक्ता भी है। अनेक गुणों से युक्त है। कर्मों का सर्वथा नाश हो जाने पर ऊर्ध्वगमन करना जीव का स्वभाव है। यह जीव परिणमनशील अर्थात् परिणमन करने वाला है दीपक के प्रकाश की तरह।65 जीव नित्य है यह जीव नित्य है लेकिन नर-नारकादिपर्याय जुदी-जुदी है। जिस प्रकार मिटी नित्य है परन्तु पर्यायों की अपेक्षा उसका उत्पाद और विनाश होता रहता है उसी प्रकार यह जीव नित्य है अर्थात् द्रव्यत्व सामान्य की अपेक्षा जीव द्रव्य नित्य है और पर्यायों की अपेक्षा अनित्य है एक साथ दोनों अपेक्षाओं से यह जीव उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप है। जो पर्याय पहले नहीं थी उसका उत्पन्न होना उत्पाद कहलाता है किसी पर्याय का उत्पाद होकर नष्ट हो जाना व्यय कहलाता है और दोनों पर्यायों में तदवस्थ होकर रहना ध्रौव्य कहलाता है। यह आत्मा उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य तीनों लक्षणों से युक्त है वह जीव है।66 जीव अनुभूति गम्य है __ जिस प्रकार दूसरे पदार्थ प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं, वैसे जीव पदार्थ प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता। परन्तु जीव स्वानुभव-प्रमाण से जाना जा सकता है। मैं सुखी हूँ, मैं दु:खी हूँ, ऐसी संवेदना शरीर को नहीं हो सकती, क्योंकि वह तो पृथ्वी आदि पंचभूतों का बना हुआ है। यदि शरीर को आत्मा माना जाय तो मृत शरीर में भी ज्ञान का प्रकाश होना चाहिए। अगर मृत शरीर को भी सजीव शरीर माना जाये तो इच्छा, अनुभूति आदि गुण भी मृतक शरीर में होने चाहिए परन्तु ऐसा देखा नहीं जाता। इससे सिद्ध होता है कि इन गुणों का उपादान शरीर नहीं, कोई दूसरा ही तत्त्व है और उसी का नाम आत्मा है। शरीर पृथ्वी आदि भूतसमूह का बना होने से भौतिक है अर्थात् जड़ है। भौतिक शरीर से भिन्न जो भी चैतन्य रूप है वही जीव है।67 जीव के अनुभूतिगम्य सिद्ध होने पर भी भारतीय दर्शनों में इसका अनेक प्रकार से वर्णन मिलता है जिसे कि आदिपुराणकार ने अपने वैदुष्यपूर्ण ढंग से मत-मतान्तरों को प्रस्तुत कर अपना उपर्युक्त सिद्धान्त स्थिर किया है। जीव चैतन्य स्वरूप है चार्वाक मत का कहना है कि इस संसार में जीव नाम का कोई तत्त्व
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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