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________________ आदिपुराण में ईश्वर सम्बन्धी विभिन्न धारणाये और रत्नत्रय विमर्श 341 मोक्ष कोई उत्पन्न होने वाली वस्तु नहीं है। केवल कर्म-बन्ध से छूट जाना अथवा आत्मा से कर्मों का हट जाना ही मोक्ष है। इससे आत्मा में कोई नई वस्तु उत्पन्न नहीं होती जिससे उसके अन्त की कल्पना करनी पड़े। जिस प्रकार बादल हट जाने से जाज्वल्यमान सूर्य प्रकाशित होता है उसी प्रकार कर्म के आवरण हट जाने से आत्मा के सब गुण प्रकाशित होते हैं, अथवा आत्मा अपने मूल ज्योतिर्मय चित्स्वरूप में पूर्ण प्रकाशित होता है। सर्वथा निर्मल मुक्त आत्मा पुनः कर्मों से बद्ध नहीं होता और इस कारण उसका संसार में पुनरावर्तन भी नहीं होता । उमास्वाति ने तत्वार्थसूत्र में कहा है दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं प्रादुर्भवति नाङ्कुरः । कर्मबीजे तथा दग्धे न रोहति भवाङ्कुरः ॥ त.सू. 10.2-3 संसार का सम्बन्ध कर्म सम्बन्ध के अधीन है और कर्म का सम्बन्ध राग-द्वेष मोह की चिकनाहट के अधीन है। जो पूर्ण निर्मल हुए हैं, जो कर्म के लेप से सर्वथा रहित हो गए हैं उनमें राग-द्वेष की चिकनाहट नहीं होती । इसीलिये उनके साथ कर्म के पुनः सम्बन्ध की कल्पना भी नहीं । अतएव संसार चक्र में उनका पुनरवतरण असम्भव है। मुक्तिदशा में आत्मा का किसी अपर शक्ति में विलय नहीं होता। वह किसी अन्य सत्ता का अवयव या विभिन्न अवयवों का संघात नहीं, वह स्वयं स्वतन्त्र सत्ता है। उसके प्रत्येक अवयव परस्पर अनुविद्ध हैं। इसलिए वह स्वयं अखंड हैं। उसका सहज स्वरूप प्रकट होता है - यही मुक्ति है । मुक्तात्माओं की विकास की स्थिति में भेद नहीं होता । किन्तु उनकी सत्ता स्वतन्त्र होती है। सत्ता का स्वातन्त्र्य मोक्ष की स्थिति का बाधक नहीं है। अविकास या स्वरूपावरण उपाधिजन्य होता है, इसलिए कर्म उपाधि मिटते ही वह मिट जाता है सब मुक्तात्माओं का विकास और स्वरूप समकोटिक हो जाता है। आत्मा की जो पृथक्-पृथक् सर्वतन्त्र स्वतन्त्र सत्ता है वह उपाधिकृत नहीं है, सहज है, इसलिए किसी भी स्थिति में उनकी स्वतन्त्रता पर कोई आंच नहीं आती। आत्मा अपने आप में पूर्ण है, इसलिए उसे दूसरों पर आश्रित रहने की कोई आवश्यकता नहीं होती। इसलिए वह किस अन्य में लीन नहीं होता अर्थात् ब्रह्म में समा नहीं जाता यही भेद रेखा जैन और वेदान्त दर्शन का मोक्ष तत्त्व के विषय में प्रकट होती है। शेष समानता देखी जा सकती है। वह
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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