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________________ आदिपुराण में ईश्वर सम्बन्धी विभिन्न धारणाये और रत्नत्रय विमर्श 329 सकता। यदि सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर लिया किन्तु सम्यग्चारित्र अर्थात् आचरण नहीं किया तब सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान का कोई महत्त्व नहीं । न ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। सम्यग्चारित्र के द्वारा ही जीव पूर्व किये हुए कर्मों की निर्जरा करता है। चाहे वह निर्जरा तप के द्वारा करें चाहे पाँच महाव्रतों के पालन से करें, चाहे गृहस्थ के बारह अणुव्रतों के पालन से करें, चाहे वह दान से निर्जरा करता है। यह सभी निर्जरा के साधन आदि सम्यग्चारित्र में गिने जाते हैं। सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यग्चारित्र तीनों के संयोग से ही जीवात्मा मोक्ष प्राप्त करके जन्म-मरण के चक्र से रहित हो सकता है। ये तीनों ही मोक्ष प्राप्ति में सम्मिलित रूप से कारण (हेतु) हैं न कि पृथक्-पृथक् रूप से कारण हैं। / 1. आ. पु. 4.15-17 2. आ. पु. 4.18-19 3. आ. पु. 4. 20-21 4. आ. पु. 4.22 5. आ. पु. 4.23 6. आ. पु. 4.24-25 7. आ. पु. 4.26 8. आ. पु. 4.27-28 9. आ. पु. 4.29-30 10. आ. पु. 4.31-32. 11. आ. पु. 4.33-34 12. आ. पु. 4.35-36 13. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । संदर्भ 14. आ. पु. 1.4; 2.64; 11.59 17.61; 229; 25.76 15. तत्त्वार्धाधिगमसार - 8.2, 4 16. त.सू. ( के. मु.) 1.1 (वि.) 17. आप्तागम पदार्थानां श्रद्धानं परया मुदा । 18. जीवादिसप्तके नत्त्वेश्रद्धानं यत् स्वतोऽञ्जसा । परप्रणयनाद् वा तत् सम्यग्दर्शनमुप्यते ।। - त. सू. 1.1 - आ. पु. 24.117 -- आ. पु. 47.304
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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