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________________ 328 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण चारित्र। सकल चारित्र सम्पूर्ण चारित्र कहलाता है जो महाव्रत रूप होता है तथा बाह्याभ्यन्तर परिग्रह से रहित साधुओं के होता है। विकल चारित्र एक देश चारित्र कहलाता है जो अणुव्रत रूप होता है और परिग्रह सहित गृहस्थों के होता है। 50 एक आदर्श साधक सांसारिक सुखों को छोड़कर दुर्धर तपश्चरण को स्वीकार करता है और कर्माश्रव को रोककर कर्मनिर्जरा का प्रयत्न करता है वह उच्चतर चारित्र का पालन करने के हेतु पाँच महाव्रतों (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, पाँच समितियाँ - ईर्या, भाषा, एषणा, आदान, निक्षेपण और प्रतिष्ठापना तथा त्रिगुप्तियाँ - मन, वचन और काय का परिपालन करता है। उत्तराध्ययन सूत्र में चारित्र के पाँच भेद कहे गये हैं - (क) सामायिक चारित्र (ख) छेदोपस्थापना चारित्र (ग) परिहार विशुद्धि चारित्र (घ) सूक्ष्म सम्पराय चारित्र (ङ) यथाख्यात चारित्र।। 52 सम्यग्चारित्र की भावनाएँ चलने आदि के विषयों में विवेक रखना अर्थात् ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और प्रतिष्ठापन इन पाँच समितियों का पालन करना, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति का पालन करना तथा क्षुधा-पिपासा आदि बाईस परीषहों को सहन करना ये चारित्र की भावनाएँ कही जाती हैं।।53 समीक्षा सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र, ये तीनों मोक्षमार्ग अर्थात् मोक्ष-प्राप्ति के साधन व उपाय हैं। तीनों संयुक्त रूप से मोक्ष के उपाय कहे जाते हैं। ये तीनों मार्ग पृथक्-पृथक् नहीं, बल्कि समवेत रूप में कार्यकारी होते हैं अर्थात् इन तीनों में से कोई एक या दो आदि पृथक-पृथक रहकर मोक्ष के कारण नहीं है, बल्कि समुदित रूप से एक रस होकर ही ये तीनों युगपत् मोक्ष मार्ग है। क्योंकि किसी वस्तु को जानकर उसकी श्रद्धा या रुचि हो जाने पर उसे प्राप्त करने के प्रति आचरण होना भी स्वाभाविक है। आचरण के बिना ज्ञान, रुचि व श्रद्धा यथार्थ नहीं कहे जा सकते। भले ही व्यवहार से इन्हें तीन कह सकते हैं परन्तु वास्तव में यह एक अखण्ड चेतन के ही सामान्य व विशेष अंश है। सम्यग्दर्शनरहित जीव को सम्यग्ज्ञान प्राप्त नहीं होता। सम्यग्ज्ञान के बिना सम्यग्चारित्र नहीं हो सकता। सम्यग्चारित्र के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं किया जा
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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