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399. जै. सि.को., (भा. 1) पृ. 483 400. जै. सि.को. (भा. 1), पृ. 482 401. नमस्ते विक्रियर्द्धानामष्टधा सिद्धिमीयुषे ।
402. आ.पु. 2.71 (टीका)
403. ति.प. 4.1026
404. आ.पु. 2.71 (टीका)
405. जै. सि.को., (भा. 1) 480
406. आ. पु. 2.71 (टीका)
407. वही। आ. पु.
408. ति.प. 4.1028
409. आ.पु. 2.71 (टीका)
410. वही
411. जै. सि.को., (भा. 1) पृ. 480-481
412. जै.सि.को., (भा. 1) पृ. 481
413. आमर्ष क्ष्वेलवाग्वि प्रुङ्जल्लसर्वौषधे नमः ।
414. आ.पु. 2.71 (टीका)
415. ति.प. 4.1069.1072
416. आ.पु. 2.71 (टीका)
417. आ. पु. 2.71 (टीका) 418. वही ।
जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
419. आ.पु. 2.71 (टीका)
420. ति.प. 4.1073; आ. पु. 2.71 (टीका) 421. ति.प. 4.1074; आ.पु. 2.71 (टीका)
422. ति.प. 4.1075
423. रा. वा. 3, 36, 3.203.30
424. ति.प. 4.1076
425. रस त्याग प्रतिज्ञस्य रससिद्धिरभून्मुनेः ।
सूते निवृत्तिरिष्टार्थादधिकं हि महत् फलम् ।। 426. नमोऽमृतमधुक्षीर सर्पिरास्त्रविणेऽस्तु ते। 427. आ.पु. 2.72 (टीका); ति.प. 4.1084 428. ति.प. 4.1084; आ. पु. 2.72 (टीका)
आ.पु. 2.71 (टीका)
आ. पु. 2.71; ति.प., 4.1067
आ. पु. 11.86 आ. पु. 2.72