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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 293
- स.सि. 9.6.412.11
371. जै.सि.को. ( भा. 1), पृ. 479 372. कर्मक्षयार्थं तप्यत इति तपः।। 373. स दीप्त तपसा दीप्तो भेजे (भ्रेजे) तप्ततपाः परम्।
तेपो तपोऽग्रयमुग्रं च घोरांघो (होऽ) रातिमर्मभित्।।
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आ.पु. 11.82; ति.प. 4.1052
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आ.पु. 4.90
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आ.पु. 2.73
374. ति.प. 4.1052, आ.पु. 11.82 (टीका) 375. आ.पु. 11.82 (टीका); ति.प. 4.1052-1054 376. ति.प. 4.1053 377. आ.पु. 11.82 (टीका) 378. आ.पु. 11.82 (टीका) 379. ति.प. 4.1050 380. जै.सि.को. (भा. 1) 483 381. जै.सि.को. - (भा. 1) पृ. 477-482 382. वही 383. भजन्त्येकाकिनो नित्यं वीतसंसारभीतयः।
प्रवृद्धनरवरा धीरा यं सिंहा इव चारणा:।। 384. जल जङ्घा फल श्रेणी तन्तुपुष्पाम्बर श्रयात्।
चारद्धिजुषे तुभ्यं नमोऽक्षीणमहर्द्धये।। 385. आ.पु. 2.73 (टीका); ति.पं. 4.1036 386. आ.पु. 2.73 (टीका); ति.प. 4.1037 387. आ.पु. 2.73 (टीका) 388. वही। 389. वही। 390. वही, 2.73 (टीका) 391. वही। 392. ति.प. 4.1041. 393. ति.प. 4.1042 394. ति.प. 4.1043 395. ति.प. 4.1044 396. ति.प. 4.1045 397. ति.प. 4.1046 398. ति.प. 4.1047