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________________ आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 283 -- आ.पु. 36.121 - आ.पु. 36.122 159. आ.पु. 36.120 160. त.सू. - (के.मु.) 9.9 (वि.) 161. स सेहे वधमाक्रोशं परमार्थविदां वरः। शरीरके स्वयं त्याज्ये निःस्पृहोऽनभिनन्दथुः। 162. त.सू. (के.मु.) 9.9 (वि.) 163. आ.पु. 36.121 164. त.सू. (के.मु.) 9.9 (वि.) 165. त.सू. - (के.मु.) 9.9 (वि.) 166. याचित्रियेण नास्येष्टा विष्वाणेन तनुस्थितिः। तेन वाचंयमो भूत्वा याञ्चाबाधामसोढ सः।। 167. त.सू. - (के.मु.) 9.9 (वि.) 168. वही। 169. वही। 170. वही। 171. त.सू. - (के.मु.) 9.9 (वि.) 172. वही। 173. वही। 174. वही। 175. परीषहजयादस्य विपुला निर्जराऽभवत्। कर्मणां निर्जरोपायः परीषजयः परः।। 176. त.सू. - (के.मु.) 9.18 (वि.) 177. सामायिकच्छेदोपसामीप्यपरिहारविशुद्धि। सूक्ष्मसम्पराययथाख्यातमिति चारित्रम्।। 178. भ.आ. - वि. 8.41.11 179. उत्तरा. सू. 28.32 (वि.) 180. अप्रतिक्रमणे धर्मे जिनाः सामायिकवह्वये। 181. त.सू. (सु.ला.स.) 9.18 (वि.) 182. छेदोपस्थापनाभेद प्रपञ्चोऽन्योन्य योगिनाम्। 183. त.सू. 9.8 184. वही। 185. त.सू. - (के.मु.) 9.18 (वि.) 186. यथाख्यातमवाप्योरुचारित्रनिष्कषायकम्। --- आ.पु. 36.128 - त.सू. 9.18; उत्तरा. 28.32-33 - आ.पु. 20.171 - आ.पु. 20.172 -- आ.पु. 47.247
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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