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________________ आदिपुराण में अजीव तत्त्व विमर्श 157 परन्तु इनके रूप का संहरण नहीं हो सकता इसलिए विघातरहित होने के कारण सूक्ष्म भी हैं।37 जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन-भेदन, अन्यत्र प्रायण कुछ भी न हो सके, ऐसे नेत्र के दृश्यमान पुद्गल स्कन्ध को स्थूल सूक्ष्म कहते हैं।38 (ङ) स्थूल - पानी आदि तरल पदार्थ जो कि पृथक् करने पर भी मिल जाते हैं स्थूल भेद के उदाहरण हैं - दूध, पानी आदि पतले पदार्थ स्थूल कहलाते हैं।39 जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन-भेदन न हो सके किन्तु अन्यत्र प्रायण हो सके, उस पुद्गल स्कन्ध (तरल) को बादर कहते हैं।10। (च) स्थूल स्थूल - पृथ्वी आदि स्कन्ध जो कि भेद किये जाने पर फिर न मिल सकें स्थूल स्थूल कहलाते हैं।। कार्मण पुद्गल कर्म की परिभाषा और उसके भेदोपभेद कर्म की परिभाषा कर्म शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है – “क्रियते इति कर्म" अर्थात् जो किया जाये वह कर्म है। कर्म शब्द के लोक और शास्त्र में अनेक अर्थ उपलब्ध होते हैं। लौकिक व्यवहार या काम-धन्धे के अर्थ में कर्म शब्द का व्यवहार होता है तथा खाना पीना, चलना, फिरना आदि क्रिया का भी कर्म के नाम से व्यवहार किया जाता है। इसी प्रकार कर्मकाण्डी मीमांसक योग आदि क्रियाकलाप के अर्थ में कर्म को मानते हैं, स्मार्त विद्वान् ब्राह्मण आदि चारों वर्णों तथा ब्रह्मचर्यादि चारों आश्रमों के लिए नियत किये गये कर्मरूप अर्थ में लेते हैं, पौराणिक लोग व्रत नियमादि धार्मिक क्रियाओं के अर्थ में, व्याकरण के निर्माता - कर्ता जिसको अपनी क्रिया के द्वारा प्राप्त करना चाहता हो अर्थात् जिस पर कर्ता के व्यापार का फल गिरता हो, उस अर्थ में लेते हैं, नैयायिक लोग उत्क्षेपणादि पाँच सांकेतिक कर्मों में कर्म शब्द का व्यवहार करते हैं और गणितज्ञ लोग योग और गुणन आदि में भी कर्म शब्द का प्रयोग करते हैं, परन्तु जैन दर्शन में इन सब अर्थों से भिन्न एक पारिभाषिक अर्थ में उसका व्यवहार किया गया है।'
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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