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________________ 154 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 4. पुद्गल : पुद्गल का लक्षण - जिसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श पाया जाये. उसे पुद्गल कहते हैं। पूरण और गलन रूप स्वभाव होने से पुद्गल नाम सार्थक हैं। पूर्ण होना अर्थात् मिलना, बद्ध होना. गलन अर्थात् पृथक् होना - बिछुड़ना। जो मिले तथा जुदा हो वह पुद्गल है।17 धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चार पदार्थ मूर्ति से रहित हैं, पुद्गल द्रव्य मूर्ति है - मूर्त का अर्थ है जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण हो। अर्थात् जिसमें पाँच इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय के द्वारा जिसका स्पष्ट ज्ञान हो उसे मूर्ति कहते हैं, पुद्गल को छोड़कर और किसी पदार्थ का इन्द्रियों के द्वारा स्पष्ट ज्ञान नहीं होता। इसलिए पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है शेष द्रव्य अमूर्तिक हैं। जो गलन पूरण स्वभाव सहित है वह पुद्गल है। यहाँ स्निग्ध या रूक्ष कणों की संख्या वृद्धि का नाम पूरण तथा उनकी संख्या हानि का नाम गलन है। शब्द, रस, गन्ध और वर्ण वाले पुद्गल होते हैं।20 शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप (धूप) और उद्योत (चन्द्र का प्रकाश) वाले भी पुद्गल होते हैं यह सभी पुद्गल के ही पर्याय हैं। पुद्गलास्तिकायरूपी है।21 रूपी का अर्थ होता है मूर्त। मूर्त वह है जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध ओर वर्ण हो। परन्तु रूपी अथवा मूर्तिक का अर्थ है जिसे चर्मचक्षुओं से देखा जा सके लेकिन देखा जाना सम्भव नहीं या दिखाई देने योग्य मानना संगत नहीं है क्योंकि पुद्गल-परमाणु इतना सूक्ष्म होता है कि चर्म-चक्षुओं से दृष्टिगोचर हो ही नहीं सकता। सूक्ष्म पुद्गल तो देखना बहुत दूर की बात है, अनन्तानन्त सूक्ष्म परमाणुओं के मेल से बना व्यवहार परमाणु भी दृष्टिगोचर नहीं होता।-2 केवली भगवान ही उस परमाणु को प्रत्यक्ष जान सकते हैं। पूरणात् गलनात् इति पुद्गलाः परमाणव: - पुद्गल परमाणु मिलते है तथा अविलग होते हैं। संघबद्ध होना - स्कन्धरूप होना, बिछुड़ना-पृथक् होना - यह पुद्गल का स्वभाव या प्रकृति है। पुद्गल द्रव्य का यह नामकरण उसके इन्हीं गुण के कारण हुआ है। पुद्गल के प्रकार -- पुद्गल दो प्रकार के होते हैं24(क) स्कन्ध (ख) परमाणु
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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