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________________ 148 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण नारकी वेदना घोरा तेनासौ किल बोधित:। निर्विद्य विषयासंगात् तपो दुश्वरमाचरत्।। ततो ब्रह्मेन्द्रता सोऽगात् जीवितान्ते समाहितः। क्व नारक: क्व: देवोऽयं विचित्रा कर्मणां गतिः।। - आ.पु. 10.116 118 133. जै.त.प्र.. (अ.ऋ.जी.) - पृ. 20.104--107 134. इत्यष्टधा निकायाख्या दधाना विबुधोत्तमाः। प्राग्भवेऽभ्यस्तनिः शेषश्रुतार्थाः शुभभावनाः।। ब्रह्मलोकालयाः सौम्याः शुभलेश्या महद्धिकाः। तल्लोकान्तनिवासित्वाद् गता लौकान्तिकश्रुतिम्।। - आ.पु. 17.49-50 135. ते च सारस्वतादित्यौ वहिनश्चारुण एव च। गर्दतोयः सतुषितोऽव्याबाधोऽरिष्ट एव च।। --- आ.पु. 17.48 136. आ.पु. 7.57 137. रज्जु 3 करोड़ 81 लाख 27 हजार 970 मन वजन का एक भार होता है। ऐसी 1000 भार अर्थात् 38 अरब 12 करोड 79 लाख 70 हजार मन वजन का लोहे का गोला 6 मास 6 दिन 6 प्रहर और 6 घड़ी में जितनी दूरी तर करे, उतनी लम्बी दूरी तक रज्जु की होती है। - त.सू. (के.मु.) 4.48-53 (वि) 138. जै.त.प्र. - (अ.ऋ.जी.) पृ. 107 139. जै.त.प्र. - (अ.ऋ.जी.) पृ. 103-107 140. गुरोस्तस्यैव पार्वे तौ गृहीत्वा परमं तपः। सुदर्शनमथाचाम्लवर्द्धनं चाप्युपोषतुः।। निदानं वासुदेवत्वे व्यधाद् विकसितोऽप्यभुत्। कालान्ते तावजायेतां महाशुक्रसुरोत्तमौ।। इन्द्रप्रतीन्द्रपदयोः षोडशाब्ध्युपमस्थिती। तौ तत्र सुखसाद्भूतावन्वभूतां सुरश्रियम्।। - आ.पु. 7.77-79 141. जै.त.प्र. - (अ.ऋ.जी.) पृ. 107-108 142. वही. - (अ.ऋ.जी.) पृ. 107-108 143. जै.त.प्र. - (अ.ऋ.जी.) पृ. 106 144. बहुभिः खेचरैः सार्द्ध जगन्नन्दनशिष्यताम्। प्रपद्य कनकावल्या प्राणतेन्द्रोऽभवद् विभुः।। - आ.पु. 7.39; राज्यान्ते केशवेऽतीतेतपस्तप्त्वा महाबलः। पार्वे समाधिगुप्तस्य प्राणतेन्द्रस्ततोऽभवत्।। -- आ.पु. 7.83 145. जै.त.प्र. - (अ.ऋ.जी.), पृ. 106-109 146. जै.त.प्र. - (अ.ऋ.जी.), पृ. 106 147. पञ्चैवाणुव्रतान्येषां त्रिविधं च गुणव्रतम्। शिक्षाव्रतानि चत्वारि व्रतान्याहुगुहाश्रमे।। -- आ.पु. 10.162
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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