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________________ 136 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण ग्रैवेयक की सीमा से एक रज्जु 6 ऊपर रज्जु घनाकार विस्तार में चार दिशाओं में चार विमान हैं। ये 1100 योजन ऊँचे और 2100 योजन की अँगनाई वाले तथा असंख्यात योजन लम्बे चौड़े हैं। इन चारों विमानों के मध्य में एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा और गोलाकार पाँचवाँ विमान हैं।।62 इन पाँचों विमानों के नाम इस प्रकार हैं - (क) पूर्व में विजय (ख) दक्षिण में वैजयन्त (ग) पश्चिम में जयन्त (घ) उत्तर में अपराजित (ङ) मध्य में सर्वार्थसिद्ध विमान है। लेश्या पाँच अनुत्तर विमानों के देवों में परम शुक्ल लेश्या होती है। दृष्टियाँ अनुत्तर विमानों के देव सम्यग्दृष्टि वाले होते हैं। मिथ्यादृष्टि और मिश्र दृष्टि वाले नहीं होते।163 शरीर का परिमाण पाँचों अनुत्तर विमान के देवों का देहमान या शरीर का परिमाण एक हाथ होता है और समचतुरस्र संस्थान होता है। 64 पाँचों विमानों के देव की आयु स्थिति जघन्य उत्कृष्ट पहला विजय विमान दूसरा वैजयन्त विमान तीसरा जयन्त विमान चौथा अपराजित विमान 31 सागरोपम 31 सागरोपम 31 सागरोपम 31 सागरोपम 33 सागरोपम 33 सागरोपम 33 सागरोपम 33 सागरोपम
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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