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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
अच्युत स्वर्ग में ऋद्धियाँ
अच्युत स्वर्ग में अणिमा, महिमादि आठ गुण, ऐश्वर्य और दिव्य भोग होते हैं। 153 देवता सुख भोग करते हुए चिरकाल तक बारहवें स्वर्ग में क्रीड़ा करते हैं। 154
उपर्युक्त बारह स्वर्गों के अतिरिक्त चौदह देवलोक कल्पातीत कहलाते हैं। वे इस प्रकार से हैं
(क) नव ग्रैवेयक (ख) पाँच अनुत्तर ।
(क) नव ग्रैवेयक
लोकपुरूष की ग्रीवा (गर्दन) पर स्थित होने से ये विमान ग्रैवेयक कहलाते हैं। ग्यारहवें - बारहवें देवलोक की सीमा से दो रज्जु ऊपर आठ रज्जु घनाकार विस्तार में गागर बेवड़े के आकार, एक दसूरे के ऊपर आकाश के आधार पर ग्रैवेयक देवलोक स्थित है। ग्रैवेयक नौ प्रकार के होते हैं नव ग्रैवेयक की तीन-तीन की तीन त्रिक हैं। पहले सबसे नीचे की त्रिक आती है। उनके नाम इस प्रकार है
(क) भद्र (ख) सुभद्र (ग) सुजात ।
इस त्रिक में 111 विमान हैं। पहली तीन त्रिक (भाग) में असंख्यात योजन ऊपर दूसरी (मध्यम) त्रिक है। इनके नाम इस प्रकार हैं
(घ) सुमानस (ङ) प्रियदर्शन (च) सुदर्शन ।
इसमें 107 विमान होते हैं।
इससे ऊपर तीसरी (उपरिम) त्रिक है। उनमें नाम इस प्रकार हैं (छ) अमोघ (ज) सुप्रतिबद्ध (झ) यशोधर ।
इस त्रिक में 100 विमान हैं। इन तीनों त्रिकों में 9 प्रतर है। 155 वे सभी विमान एक हजार योजन के ऊँचे और 2200 योजन की अंगनाई वाले हैं। 156 इन विमानों का वर्ण सफेद है। 157