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________________ 125 आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श छब्बीस स्वर्गों का स्वरूप 1. सौधर्म देवलोक सौधर्म नाम की जहाँ सभा है, उस कल्प का नाम सौधर्म है। इस कल्प का इन्द्र भी सौधर्म है। इसकी सवारी महा ऐरावत हाथी है। इसकी रानी का नाम शची है।।12 सौधर्म इन्द्र के मन्दिर से ईशान दिशा में तीन हजार कोश ऊँची, चार सौ कोश लम्बी और इससे आधी विस्तार वाली सुधर्मा सभा है। सौधर्म सभा के द्वारों की ऊँचाई चौसठ कोश और विस्तार 32 कोश है।113 जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से असंख्यात योजन (डेढ़ राजू) ऊपर जाने पर मेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में पहला सौधर्म कल्प है। इसमें तेरह प्रतर हैं (जैसे-मकान में मंजिल होती है, उसी प्रकार देवलोकों में प्रतर होते हैं। जैसे मंजिल में कमरे होते हैं, उसी प्रकार प्रतरों में विमान होते हैं।) इसमें 32 लाख विमान हैं।114 यह विमान 500 योजन ऊँचे हैं। इन का आकार अर्ध चन्द्र के समान है। सौधर्म देवलोक के देवताओं की वेश-भूषा और चिह्न सौधर्म देवलोक के देवताओं की वेशभूषा अत्यन्त शोभायमान होती है। देवताओं के चिह्न से युक्त मुकुट लगा होता है और किरीट के धारक होते हैं। श्रेष्ठ कुण्डलों से उद्योतित मुख वाले होते हैं। कमल के पत्र के समान गौरे रंग होते हैं। सुगन्धित माल्य और अनुलेपन के धारक होते हैं। रक्त आभायुक्त शोभा वाले होते हैं। वक्षस्थल हार से सुशोभित होता है। कड़े और बाजूबन्धों से मानों भुजाओं को स्तब्ध कर रखी है। कुण्डलादि आभूषण उनके कपोलस्थल को सहला रहे हैं, कानों में वे कर्णपीठ और हाथों में विचित्र कराभूषण धारण करते हैं। देवता के शरीर का तेज दैदीप्यमान होता है। देवता कल्याणकारी उत्तम वस्त्र पहने हुए तथा कल्याणकारी श्रेष्ठ माला के धारक होते हैं। 15 सौधर्म देवलोक की देवियाँ सौधर्म देवलोक में दो प्रकार की देवियाँ होती हैं--- (क) परिगृहीता देवियाँ (पति वाली) पत्नी स्वरूप, (ख) अपरिगृहीता देवियाँ (बिना पति वाली, गणिका वत् वाली।)
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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