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________________ (iii) - इसी सन्दर्भ में जैन दर्शन की विशेषज्ञा साध्वीरत्न डॉ. सुप्रिया जी ने शोध प्रबन्ध के रूप में "जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण का समीक्षात्मक अध्ययन'' पस्तुत करने का सार्थक प्रयत्न किया है। इस शोध प्रधान प्रबन्ध में जैन-विद्या से सम्बन्धित अवधारणाओं का प्रस्तुतिकरण एवं समीक्षात्मक विश्लेषण उपलब्ध होता है। यह शोध-कार्य इसलिये उपयोगी और महत्त्वपूर्ण स्वयंमेव सिद्ध होगा कि उस में विषय-वस्तु की जहाँ व्यापकता है, वहाँ गम्भीरता भी संनिहित है। शोधार्थिनी श्रमणी श्री ने उक्त ग्रन्थ के किसी एक ही विषय-बिन्दु पर समीक्षात्मक-दृष्टि से अध्ययन नहीं किया है, अपितु ग्रन्थ-गत समग्र-विषयों पर जैन-दृष्टि से समीक्षात्मक-शैली से विश्लेषणा की है, जिससे यह शोध प्रबन्ध समीक्षात्मक-अध्ययन के क्षेत्र में एक अप्रतिम अवदान के रूप में कीर्तिमान है। मेरा यह विनम-मन्तव्य भी अप्रासंगिक नहीं है कि इस शोध पूर्ण ग्रन्थ पर प्रस्तावना के रूप में जो शब्द-न्यास हो पाया है, वह महाप्रज्ञ उपाध्याय गुरुवर्या श्री पुष्कर मुनि जी म. एवं श्रमणी-सुमेरू माता श्री प्रकाशवती जी म. की अतिशय-कृपा दृष्टि की फलश्रुति है और चमत्कृति है। उनके प्रति भी सश्रद्ध-प्रणति है। मुझे आशा ही नहीं अपितु समग्र-विश्वास है कि विद्या की अधिष्ठात्री दिव्य देवी माता शारदा की श्रेष्ठ-सुता साध्वीवर्या डॉ. श्री सुप्रिया जी द्वारा प्रणीत यह ग्रन्थ वस्तुवृत्या शोध-अनुसन्धान के क्षितिज पर सहस्ररश्मि दिनमणि के रूप में अहर्निश प्रकाशमान होता रहेगा। - उपाध्याय रमेश मुनि शास्त्री
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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