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________________ 108 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण अतः वह क्यों मना है। शास्त्रकार कहते हैं कि शव-भक्षण भी नरक गति का कारण है पशु स्वयं मरा हो, मारा गया हो दोनों दशाओं में उसका मृत शरीर कुणिमा है और कुणिमा भक्षण भी नरक गति का कारण है। शरीर शास्त्र का यह नियम है कि मृत शरीर में शीघ्र ही अनेक प्रकार के कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं। शव-भक्षण भक्षण ही नहीं उसके साथ अनन्त जीवों का भक्षण है। मांस भक्षण सब बुराइयों की जड़ है। इसलिए कुणिमाहार को नरक का कारण माना है।18 कौन से जीव नरक में जाते हैं स्वभाव से निर्दयी क्रूर जीव नरक में जाते हैं। जलचर (जल में विचरण करने वाले जीव) मछली आदि मर कर नरक में उत्पन्न होते हैं। थलचर (पृथ्वी पर रहने वाले) मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जीव नरक में जाते हैं। सर्प, सरीसृप आदि जीवों की उत्पत्ति नरक में होती है। पाप करने वाली दुराचार स्त्रियाँ, माँस भक्षण करने वाले क्रूर पक्षियों की गति नरक की है, क्रोधी माँसाहारी पशु नरक में जाते है, घोर पाप करने वाले मनुष्य भी नरक में जाते हैं। कौन से जीव कौन-सी नरक में जाते हैं असन्नी पंचेन्द्रिय जीव धम्मा नामक नरक में उत्पन्न होते हैं। वे दूसरे, तीसरे आदि नरक भूमि में उत्पन्न नहीं होते। सरीसृप - सरकने वाले गुहा गिरगिट आदि दूसरी नरक में उत्पन्न होते हैं। पक्षी तीसरी पृथ्वी तक ही उत्पन्न होते हैं। सर्प अर्थात् छाती के बल चलने वाले प्राणी चौथी नरक तक पैदा होते हैं। अर्थात् पहली से चौथी नरक तक उत्पन्न होते हैं। सिंह, हाथी आदि पाँचवीं नरक तक उत्पन्न होते हैं। इससे आगे उत्पन्न नहीं होते। अर्थात् पहली से पाँचवीं नरक तक उत्पन्न हो सकते हैं। स्त्रियाँ छठी नरक तक जा सकती है, इसकी आगे की नरकों में नहीं। मनुष्यों में घोर हिंसा करने वाले पापी मनुष्य और तिर्यंचों में मत्स्य, मगरमच्छादि प्राणी सातवीं नरक में उत्पन्न होते हैं। अर्थात् प्रथम नरक से सातवें नरक तक उत्पन्न हो सकते हैं।20 नरक में जीवों की उत्पत्ति सातों पृथ्वियों में से जिस पृथ्वी में नारकी जीवों ने उत्पन्न होना होता है। वे जिस प्रकार मधु-मक्खियों के छत्ते में मक्खियाँ लगी होती हैं उसी प्रकार नारकी मधु-मक्खियों के समान लटके हुए घृणित स्थानों में नीचे की ओर मुख करके अपने पापकर्म के उदय से अन्तर्मुहूर्त (48 मिनट) में ही अत्यन्त
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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