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________________ 106 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 5. धूमप्रभा पृथ्वी इस पृथ्वी में मिर्च आदि के धुएँ से भी अधिक तेज दुर्गन्ध वाला धुआँ व्याप्त रहता है। इसी कारण इस पृथ्वी का नाम धूमप्रभा पड़ा। इस भूमि की मोटाई 1 लाख 18 हजार योजन है। इसमें 5 पाथड़े और 4 आन्तरें हैं। इसमें 3 लाख नरकवास हैं। 13 6. तमः प्रभा पृथ्वी इस पृथ्वी में हमेशा अन्धकार ही छाया रहता है। इसी कारण इस पृथ्वी का नाम तमप्रभा पड़ा। इस भूमि की मोटाई 1 लाख 16 हजार योजन है। इसमें 3 पाथड़े और 2 आन्तरे हैं। इसमें 5 कम एक लाख नरकावास हैं। 14 7. महातमः प्रभा पृथ्वी इस पृथ्वी में घोरातिघोर अन्धकार छाया रहता है। इसी कारण इस पृथ्वी का नाम महातमः प्रभा पृथ्वी पड़ा। इस भूमि की मोटाई 1 लाख 8 हजार योजन है। इसमें एक ही पाथड़ा है, इसलिये आन्तरा नहीं है। इसमें 5 नरकावास हैं । सातों नरकभूमियों में कुल नरकवासों की संख्या 84 लाख हैं। इनमें घोर पापी जीव तीव्रातितीव्र वेदना भोगते हैं। 15 नरक में जाने के हेतु सदा नरक में जाने के निम्नलिखित हेतु कहे गये हैं - हिंसा करने से, झूठ बोलने से, चोरी करने से, परस्त्री से भोग विलास करने से, शराब पीने से अर्थात् शराब पीने से मन विकारी हो जाता है। मन में बुरे भाव जागृत होते हैं और जीव बुरी आदतों का शिकार हो जाता है फिर बुरे कार्य करता है। मिथ्यादृष्टि जीव भी नरक में जाते हैं अर्थात् भगवान की वाणी पर श्रद्धा न रखने से, अधिक क्रोध करने से, मन को सदा रौद्रध्यान में लगाने से, पापकारी कार्य करने से (जीवों का वध ), वस्तुओं के प्रति अधिक आसक्ति भाव अर्थात् परिग्रह में मूर्च्छा भाव रखने से, केवली प्ररूपित धर्म का विरोध और अधर्म में विश्वास रखने से 16, साधुओं ( त्यागी, तपस्वी आत्माओं) की निन्दा चुगली करने से, पंचेन्द्रिय प्राणियों की (मछली, बकरी, मुर्गी) हिंसा करने से, व्यापार करने से, माँसाहार करने से, हिंसा करने वाले जीवों को पालने से (कुत्ता, बिल्ली आदि) जो स्वयं मांस भक्षण करते है। दूसरों को खाने की प्रेरणा देते हैं। पंच महाव्रतों का पालन करने वाले सन्तजनों पर क्रोध आदि
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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