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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र हस्योद्घाटन ही महाराज के पास आया । इस वक्त राजा का क्रोध उग्ररूप को धारण किये हुए था; क्रोध से विकृत बने हुए राजा को देखकर प्रधान मंत्री नमस्कारकर नम्रतापूर्वक बोला - "महाराज ! ऐसा असमंजस और भयानक कार्य करने का क्या कारण है? क्या इस समय कुमारी मलयासुंदरी आपकी वही पुत्री नहीं है जिसके विनयादि गुणों की आप सदैव प्रशंसा किया करते थे? क्या अब वह उसके ऊपर का वात्सल्य आप में नहीं रहा? इस भोली भाली राजकुमारी ने प्राणदंड पाने का ऐसा क्या अपराध कर डाला? महाराज ! जो कार्य करना हो उसे दीर्घ दृष्टि से पूर्वापर विचार करके करना चाहिए । अविचारित किये हुए कार्य का परिणाम किसी - किसी समय मरणांत कष्ट से भी अधिक दुःसह्य उपस्थित होता है । I राजा - "प्रधान! तुम्हारा कथन बिल्कुल ठीक है; परंतु मैं अविचारित कार्य नहीं कर रहा हूं । बाहर से भोली दीखने वाली इस कुमारी ने हमारा भयंकर अपराध किया है । इसने हमारे वंश को सर्वथा नष्ट करने का प्रपंच रचा है । आज हमें इसकी जालसाजी का पता लगा है; इत्यादि कथनपूर्वक राजा ने कनकवती द्वारा सुना हुआ वृत्तांत मंत्री को कह सुनाया । यह सुनकर मंत्री भी भयभीत हो मौन धारणकर कुछ विचार में पड़ गया । इस बात का निर्णय करने में भी उसकी बुद्धि न चली । राजा की आज्ञा पाकर दो चार सिपाहियों को साथ ले कोतवाल राजकुमारी के महल में आ पहुंचा और मंद स्वर से मलयासुंदरी से बोला 'राजकुमारी! महाराज तुम पर अत्यंत क्रोधित हुए हैं । इस कारण उन्होंने मुझे तुम्हारा वध करने की आज्ञा दी है । हा! पराधीन हतभाग्य, मैं इस समय क्या करूँ? कोतवाल की बात सुनकर मलयासुंदरी के नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गयी । उसके चेहरे पर दीनता छा गयी और अब मुझे क्या करना चाहिए इस विचार में वह मूढ़ बन गयी । रुके हुए कंठ से कुमारी ने उत्तर दिया- 'कोतवाल ! पिताजी का मुझ पर इस भयंकर क्रोध का कारण तुम जानते हो?" कोतवाल 1 ft बोला राजकुमारी! मैं इस घटना के रहस्य को बिल्कुल नहीं जानता । - 75 -
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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