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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र हस्योद्घाटन गया है । इधर रानी चंपकमाला भी तिरस्कार कर उसे फिटकारने लगी । माता सहित पिता को क्रोधातुर देख मलयासुंदरी तुरंत ही पीछे लौट अपने महल में आ गयी । उसका मुख कमल चिंता की छाया से मुरझा गया । वह सोचने लगी - माता पिता को इतना क्रोध करने का क्या कारण होगा? मैंने मन, वचन और शरीर से आज तक कभी भी प्यारे माता पिताओं का अनिष्ट आचरण नहीं किया। मेरे हाथ से भारी से भारी कीमती वस्तु नष्ट होने पर भी पिताजी ने मुझ पर कभी क्रोध नहीं किया? आज यह क्या हुआ? माता पिता दोनों ही कुपित हो रहे हैं? उनके इस असत्य कोप का क्या कारण है यह मालूम नहीं होता । न जाने अब इस भयानक क्रोध का क्या परिणाम उपस्थित होगा? इसी सोच विचार में वह हृदय से झुरती हुई, मानसिक वेदना सहन करती हुई अपने कमरे में बैठी रही। ___ राजा ने चंपकमाला से कहा - "देवी! इस दुष्ट हृदय वाली कुमारी ने सचमुच ही लक्ष्मीपूंज हार महाबल को दे दिया है । कनकवती का कथन असत्य नहीं है; स्वयंवर में आने वाले अनेक राजकुमारों से यह दुष्ट लड़की मुझे मरवा डालेगी । हमने इसे कितना लाड़ लड़ाया? इसके स्वयंवर के लिए कितना महान् खर्च करके मंडप तैयार किया है, यह पुत्री के रूप में जन्म लेनेवाली हमारी कोई पूर्व की दुश्मन है । सचमुच ही अनुरागिनी स्त्री मनुष्य को मृत्यु से बचाती है और विरक्ता स्त्री मनुष्य को मृत्यु के द्वार पर पहुंचाती है। मित्र को शत्रु और शत्रु को भी मित्र बना देती है, इसलिए हे प्रिये! मेरा यह विचार है कि जब तक वे दुश्मन राजकुमार यहां पर न आ पहुंचे तब तक इस दुष्टा कुमारी को यमराज के हवाले कर देना चाहिए । रानी ने कुछ भी उत्तर न दिया। अनेक विचारों में उलझकर रानी के साथ राजा ने कष्ट से रात बितायी । प्रातःकाल होते ही राजा ने कोतवाल को बुलाकर आज्ञा दी कि इस मेरी पापिष्टा कुमारी मलयासुंदरी को यहां से दूर ले जाकर जान से मार डालो । इस विषय में मुझसे बार - बार पूछने या विचार करने की तुम्हें कोई आवश्यता नहीं इस बात की खबर होते ही बुद्धिनिधान सुबुद्धि नामक प्रधानमंत्री शीघ्र 74
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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