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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सुख के दिन जल्दी ही उपाय करना अच्छा है । यह बात जनता में फूट जाने पर मेरे कुल की बदनामी होगी । और शीघ्र ही कुछ उपाय न करने से प्रजा का विशेष संहार होगा । इस कुलकलंकिनी राक्षसी को इसी समय शिक्षा करनी चाहिए। मेरे साथ में बहुत से सुभट हैं, वह मुझे क्या उपद्रव कर सकती है? अब रात्रि के समय में ही शिक्षा करने से जनता में भी यह बात प्रकट न होगी । इस प्रकार सोचकर क्रोध से विचार शून्य हो राजा ने अपने विश्वासपात्र सुभटों को आज्ञा दी अरे! सुभटो! तुम इसी वक्त जाकर इस दुष्टा को पकड़ लो । एक रथ में बैठाकर इसे रौद्रअटवी में ले जाकर किसी को मालूम न हो इस तरह मार डालो । राजा का आदेश होते ही हथियार बंद अनेक सुभट उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े । उन राजपुरुषों को आते देख वह दुष्टा भयभ्रांत हो मलयासुंदरी के पास आकर कंपित स्वर से बोली - बेटी ! कितने एक राजसुभट शस्त्र हाथ में लिये मुझे मारने के लिए आ रहे हैं । मालूम होता है मैं राजा की आज्ञा बिना रात के समय तेरे पास रहती हूं । इसी कारण राजा मुझ पर क्रोधयमान् हुए हैं। संभव है राजपुरुष मुझे अवश्य ही मार डालेंगे । इसलिए तूं मुझे ऐसी जगह छिपा, जहां पर ढूंढने से भी उन्हें मेरा पता न लगे । दया की प्रेरणा से उसके कपट को न समझने वाली मलयासुंदरी ने वैसे ही वेष में कनकवती को एक संदूक में छिपाकर बाहर से ताला लगा दिया । बस इतने ही में राजा के भेजे हुए शस्त्रधारी सुभट वहां पर आ पहुंचे । एक ही पेट में दोनों साथ - साथ रहकर साथ - साथ जन्मे, खेले पढ़े, उम्र लायक बने । शादी शुदा बन गये । योगानुयोग आनेवाली भी जुड़वा बहनें थी । स्वार्थता ने वहां भी कार्य कर दिखाया। एक घर के दो विभाग, संपत्ति का बंटवारा तो ठीक, माता - पिता के अलग अलग खर्चा देने के प्रसंग से माता-पिता का बंटवारा हो गया। एक देता है माता का खर्चा, दूसरा देता है पिता का खर्चा, देखा कृत्रिम स्नेह / प्रेम का नाटक । 'स्वार्थता की कहानी और आगे बढ़ती है ।' - 147 -
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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