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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
सुख के दिन राक्षसी है? क्या उसी ने नगर में यह मारी फैला रखी है? यह बात मेरा हृदय मंजूर नहीं करता। परंतु इस औरत का असत्य बोलने में क्या स्वार्थ होगा? खैर, आज रात्रि को देखने से इस बात का निश्चय हो जायगा । यह विचारकर चिंताग्रस्त हो राजा ने कनकवती से कहा- भद्रे! यह बात तुम अन्य किसी के समक्ष न करना। ऐसी बात जनता में प्रकट होने से मेरे निर्मल कुल को कलंक लगता है। इस बात की सच्चाई का निर्णय आज रात को ही हो जायगा फिर जो योग्य होगा सो किया जायगा । कनकवती बोली - महाराज! मैं इतनी अज्ञान नहीं हूं, इसी कारण तो मैंने एकांत में यह प्रार्थना की है। अच्छा अब तुम जाओ, यों कह राजा ने कनकवती को विदाय किया।
राजमहल से विदा हो कनकवती सीधी अपने मकान पर आयी और वहां आकर राक्षसी का रूपधारण करने के योग्य वह तमाम सामग्री को साथ ले मलयासुंदरी के पास आ पहुंची । रात पड़ने पर वह मलयासुंदरी से बोली - बेटी! आज मैं उस राक्षसी का निग्रह करूंगी । जब तक मैं उसे निग्रह करके मकान के अंदर न जाऊं तब तक तूं कमरे से बाहर गृहांगण में न आना । यदि उस समय तूं कमरे से बाहर निकली तो भयंकर उपद्रव होने का संभव है। मलयासुंदरी को इस तरह की शिक्षा दे वह बाहर आयी और नग्न होकर उसने अनेक प्रकार के रंग बिरंगे चित्रों द्वारा राक्षसी के समान अपने शरीर को विचित्र किया । साक्षात् राक्षसी की भांति रूप बनाकर उसने अपने मुख में लंबे - लंबे दांत लगा लिये । एक हाथ में खप्पर और दूसरे हाथ में लंबा छुरा लेकर जिस तरह राजा को समझाया था उसी प्रकार की चेष्टायें करनी शुरू की, इस समय महाराज शूरपाल कितनेक सुभटों के साथ ले थोड़ी दूर पर रहे एक महल पर चढ़कर गुप्तरीति से उसकी तमाम चेष्टायें जानने के लिए आ खड़े हुए । उसने दूर रहकर मलयासुंदरी के गृहांगण में राक्षसी के सारे आचरण अपनी नजर से देखे । वह मन ही मन विचारने लगा ओहो! कनकवती की बतलायी हुई तमाम बातें सच ही निकलीं । इस स्त्री के द्वारा मेरा निर्मल वंश कलंकित हुआ । अब मुझे इस विषय में विलंब या सोचविचार न करना चाहिए । इसके निग्रह का
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