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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा से यह
मुखमुद्रा
नागरिक राजा से बोले - महाराज ! इसकी सुंदर और सौम्य मनुष्य कुलीन और किसी बड़े खानदान का मालूम होता है अतः ऐसे मनुष्य को इस तरह का भयंकर दिव्य देना योग्य नहीं है । उसकी सौम्यआकृति देख रानी ने भी ऐसी घोर परीक्षा लेने से राजा को निषेध किया ।
राजा - "सज्जनो ! कठिन दिव्य देने में किसी तरह का दोष नहीं है, जिस तरह सच्चासुवर्ण अग्नि में डालने पर विशेष तेजवान होकर शुद्ध होता है वैसे ही यदि यह पुरुष निर्दोष होगा तो इसकी कीर्ति में विशेष वृद्धि होगी । राजा के मुख से यह उत्तर सुनकर रानी व नागरिक लोग चुप रह गये ।"
राजा की आज्ञा से प्रधान मंत्री ने उस पुरुष को कहा - महाशय ! आप कौन हैं, हमें इस बात का कुछ पता नहीं । आप पर चोरी का अपराध रखा गया है । इसके साथ ही महाबल कुमार के शरीर को नुकसान पहुंचाने का भी संदेह किया जाता है । इस विषय में तुम निर्दोष हो या सदोष हो यह निर्णय करने के लिए यहां पर तुम्हें कठिन परीक्षा देनी होगी । इस यक्ष के मंदिर में सर्प डालकर एक घड़ा रखा गया है, वह घड़ा खोलकर तुम्हें अपने हाथ से पकड़कर उसे घड़े में से सर्प को बाहर निकालना होगा । फिर अपने हाथ से ही उस सांप को घड़े में रख देना होगा; यदि इसके दरम्यान उस सांप ने तुम्हें न डसा तो तमाम जनता तुम्हें निर्दोष मानेगी । यदि तुम सदोष हुए तो अवश्य ही वह सर्प तुम्हें डंक मारेगा और इसीसे तुम्हारे दोष का तुम्हें दंड भी मिल जायगा। महाराज सूरपाल की आज्ञा से तुम्हारी निर्दोषता प्रकट करने के लिए यह कठिन परीक्षा ली जाती है। निर्दोष मनुष्य की यह सत्य प्रतीति वाला यक्षदेव अवश्य ही सहाय करता है।
प्रधान का कथनपूर्ण होते ही पुरुष वेषधारक मलयासुंदरी धैर्यधारणकर शीघ्र ही उस घट के पास खड़ी हुई। पंचपरमेष्ठी मंत्र को स्मरणकर, महाबल द्वारा बतलाये हुए उस श्लोक का भावार्थ याद कर उसने प्रसन्नतापूर्वक उत्साह से उस घड़े को उघाड़ा और जनता के आश्चर्यपूर्वक देखते हुए उसमें हाथ डालकर, सर्प को बाहर निकाला। मलयासुंदरी का हाथ लगते ही रस्सी के
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