________________
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
कठिन परीक्षा जायगा। आज इस मनुष्य को दिव्य देकर इसकी परीक्षा करनी है । यह तमाम समाचार कह रानी को कुमार के ये कुंडल और वस्त्र देना, यों कहकर राजा ने कुंडल और वस्त्र दासी को दे दिये । दासी ने रणवास में जाकर वह कुंडल और वस्त्र महारानी पद्मावती को दे दिये । उन्हें देख रानी को अत्यानंद प्राप्त हुआ।
रानी - 'दासी! ये कुंडल आदि कहाँ से मिले? और मेरे समाचार का राजा ने क्या उत्तर दिया? दासी ने राजा का कथन किया हुआ तमाम वृत्तांत कह सुनाया। अब हर्ष और शोक से व्याकुल हो रानी पद्मावती अनेक प्रकार के संकल्प विकल्प करने लगी।' क्या सचमुच ही वह मेरे पुत्र का प्रियमित्र होगा? वह अकेला ही यहाँ क्यों आया होगा? क्या वह कुमार का समाचार लाया है? या कोई धूर्त मनुष्य मेरे पुत्र को मार कर तो उसके कुंडल वस्त्रादि नहीं लाया? मैं उस पुरुष को देखू तो सही! यह विचार कर रानी ने दासी से कहा - "दासी! जिस जगह उस पुरुष की दिव्य द्वारा परीक्षा की जायगी । मुझे भी वहां पर जाना है । उसे देखकर मैं भी इस विषय में कुछ विशेष निर्णय कर सकूँगी । इसीलिए वहां चलने की सर्व सामग्री तैयार करो।" रानी के आने के पहले ही धनंजय यक्ष के मंदिर में राजा आदि हजारों मनुष्य उस कठिन परीक्षा को देखने के लिए आ पहुंचे थे । इस समय सर्प लाने को भेजे हुए गारुड़िक भी वहां आ गये । वे राजा को नमस्कार कर बोले - "महाराज! अलंबगिरि की अनेक गुफायें ढूंढते हुए हमें श्यामवर्ण और दीर्घकाय वाला एक भयंकर सर्प मिला है, उसे हम घड़े में डालकर यहां लाये हैं; यों कहकर उन्होंने वह घड़ा राजा के सामने रख दिया। राजा ने उस घड़े को धनंजय यक्ष के मंदिर में उसकी मूर्ति के सामने रखवा दिया
और कोतवाल को आज्ञा दी कि जाओ उस पुरुष को यहां ले आओ। राजाज्ञा पाते ही शस्त्रधारी अनेक राजपुरुषों से परिवेष्ठित उस पुरुष को (मलयासुंदरी को) वहां पर लाया गया। उसके तेजस्वी और भद्राकृतिवाले चेहरे को देखकर प्रधान नागरिक आपस में कहने लगे - क्या ऐसी आकृति वाला पुरुष कभी चोर हो सकता है? यदि जल से अग्नि उत्पन्न हो, चंद्र से अंगार बरसे और अमृत से विष प्रकट हो तो ऐसे पुरुष से अकार्य हो सकता है । यह सोच विचारकर प्रधान
120