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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर से राजा व राजकुमारों का अपमान देख कितनेक तो अपने आसन से उठे तक नहीं । कितने ही लक्ष्य से भ्रष्ट हुए, कई ने स्तंभ पर बाण भी मारा परंतु स्तंभ के दो भाग न हुए । अनेक राजकुमार अपने उद्देश की पूर्ति में असफल हो हारे हुए पहलवान के समान लज्जित होकर चुपचाप अपने स्थान पर जा बैठे । यह दृश्य देखकर महाराज वीरधवल चिंता समुद्र में गोते खाने लगा। वह सोच रहा था कि अभी तक कन्या प्रगट नहीं हुई, इससे लोगों में मेरी बड़ी भारी हंसी और अपमान होगा। राजा वीरधवल को चिंतातुर देख मंडप में वीणा बजाने वालों में से एक युवक वीणा बजाता हुआ उठा और वह स्तंभ के पास आ खड़ा हुआ । उसने अपनी वीणा वादन की कला से सारी सभा को मोहित कर दिया, फिर धनुष को हाथ में लेकर वह महाराज वीरधवल से बोला- 'राजन्! अब आप मेरा सामर्थ्य देखें' यों कह उसने शीघ्र ही धनुष पर बाण चढ़ा दिया। उस वीणा वादक के हाथ में धनुष बाण देखकर सारी सभा में कोलाहल मच गया । बहुत से मनुष्य उसे धनुष बाण जमीन पर रख देने के लिए बोलने लगे। परंतु उसने सबकी बातें सुनी न सुनी कर धनुष पर एक टंकारव किया और उस स्तंभ के मर्म को जानने के कारण स्तंभ के जोड़ पर जोर से बाण मारा । स्तंभ पर बाण लगते ही उसके दोनों संपुट एक साथ ही खुल गये और उसके बीच से अकस्मात् राजकुमारी प्रकट हो गयी। पाठक महाशय! आपके दिल में इस बात को जानने की जिज्ञासा पैदा हुई होगी कि वह वीणा - वादक कौन है? और इन तमाम कार्यों की योजना करानेवाला वह सिद्धज्योतिषी जो इस समय गुम है कौन था? आपकी इस उत्कंठा को शांत कराने के लिए इस विषय का कुछ थोड़ा सा खुलासा हम यहाँ पर दे देते हैं । वह अन्य कोई नहीं था परंतु इसी कथानक का मुख्य पात्र महाबल कुमार ही है । कुमारी के हाथ की अंगुठीवाला घास का पूला हाथी के मुख में देकर आगे चलते हुए अपने आपको छिपाने के लिए महाबल ने सिद्ध ज्योतिषी का वेश धारण किया था; और उसी वेष के द्वारा उसने राजा को 96
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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