SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर गया। शिला के पश्चिम की और वज्रसार धनुष बाणसहित रखा गया । दक्षिण और उत्तर विभाग में स्वयंवर में आये हुए राजा और राजकुमारों के सिंहासन जमाये गये । मंडप में गांधर्वो ने मधुर स्वर से संगीत शुरु किया । नाचनेवाली युवतियों ने ताल मान के साथ नृत्य प्रारंभ किया। इस समय धनुष और बाण का पूजनकर सिद्धज्योतिषी ने राजा से स्वयंवर में तमाम राजकुमारों को बुलवा लेने की सूचना की। राजा के निमंत्रण करने पर तमाम राजकुमारादि स्वयंवर मंडप में आकर, प्रथम से नियुक्त किये हुए अपने - अपने सिंहासनो पर बैठ गये। सबके साथ में अपनी - अपनी योग्यता के अनुसार परिवार भी था । महाराज वीरधवल को राजकुमारों को यथायोग्य स्थान देने और उनका सन्मान करने में व्यग्र देख सिद्ध ज्योतिषी एकाएक वहां से गुम हो गया। जिस वक्त स्वयंवर में आनेवाले राजा व राजकुमारादि अपने - अपने सिंहासनों पर परिवार सहित आ बैठे उस वक्त महाराज वीरधवल ने पीछे लौट के देखा तो सिद्ध ज्योतिषी को वहां पर जब नहीं देखा तब राजा ने उसे अपने राजपुरुषों से सब जगह तलाश कराया, परंतु कहीं पर भी उसका पता न लगा। विचार में पड़े हुए राजा को कुछ देर बाद याद आया कि वह अपने अर्धसाधित मंत्र को सिद्ध करने गया होगा । सिद्ध ज्योतिष की कथन की हुई तमाम बातें अभी तक पूरी हुई है; परंतु उसने जो यह कहा था; कि राजकुमारी का पाणिग्रहण पृथ्वी स्थानपुर के नरेश शूरपाल का पुत्र महाबल करेगा । यह बात अभी तक नहीं मिली । किसी कारण इस स्वयंवर महोत्सव में वह यहां पर नहीं आ सका होगा । जब वह बतलाया हुआ कुमार ही यहां पर नहीं आ सका तब फिर वह मेरी कन्या का पाणिग्रहण किस तरह करेगा? राजा इन्हीं विचारों की उलझन में पड़ गया । इधर अपने - अपने स्थान पर स्वयंवर में बैठे हुए राजकुमार राजकन्या को वहां पर न देखकर और किसी के द्वारा यह सुनकर कि राजकुमारी को राजा ने स्वयं अंधकूप में डलवा दिया है, वे परस्पर वार्तालाप करने लगे, क्यों भाई! आप किसलिए यहां पधारे हैं? स्वयंवर मंडप में बैठकर किस लिए मूछों पर ताव दे रहे हैं । जिसकी आशा में आप यहां पधारे हैं, उसे 94
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy