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________________ ॥ श्री जिनाय नमः॥ श्रीमद्वादीभसिंहसूरिविरचित सान्धयार्थ क्षत्रचूड़ामणिः। प्रथमो लम्बः । श्रीपतिर्भगवान्पुष्याद्भक्तानां वः समीहितम् । यद्भक्तिः शुल्कतामेति मुक्तिकन्याकरग्रहे ॥१॥ __ अन्वयार्थः-(श्री पतिः) अन्तङ्ग बहिरङ्ग लक्ष्मीके स्वामी (भगवान् ) श्री जिनेन्द्र देव (वः युष्माकं) तुम (भक्तानां, मक्तोंके (समीहितम्) इच्छित कार्यको (पुष्यात् ) पूर्ण करें। (यद्भक्तिः) जिप्स निनेन्द्र देवकी भक्ति (मुक्तिकन्याकरग्रहे) मुक्ति रूपी कन्याके विवाहमें (शुल्कताम् ) द्रव्य स्वरूपताको (एति) प्रप्त करती है-॥१॥ संक्षेपेण प्रवक्ष्यामि चरितं जीवकोद्भव । पीयूषं न हि निःशेषं पिवन्नेव सुखायते ॥२॥ ___अन्वयार्थ—(अहं) मैं वादीमसिंह सूरि ( जीवकोद्भवम् ) जीवंधर स्वामीसे उत्पन्न (चरित) चरित्रको (संक्षेपेण ) संक्षेपतासे
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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