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________________ दशमो लम्बः । अन्वयार्थः -- ( हि ) निश्चय से ( विरुद्धार्थे ) विरुद्धं पदार्थ ( वीक्षिते ) देखनेपर ( चिरस्थाय्यपि ) चिरकाल से स्थित पदार्थ (अपि) भी ( नष्टं स्यात् ) नष्ट होजाते हैं अर्थात् जरासा सुख मिलने से पूर्व के सत्र दुःख भूल जाते हैं ( दीपस्य संन्निधावपि ) दियेके समीप आनेपर भी ( किं ) क्या ( गुहामुखं ) गुफाओंका मुख ( तमिस्रं ) अन्धकार युक्त ( स्यात् ) रहसकता है ? नहीं ॥ ६० ॥ २२४ अथायं नवुतेः पुत्री दत्तां गोविंन्दभूभुजा | पर्यणैषीन्महाराजः पार्थिवैर्विहिनोत्सवः ॥ ६१ ॥ अन्वयार्थः — ( अथ ) इसके अनंतर ( पार्थिवैः विहितो - त्सवः ) राजाओंने किया है उत्सव जिनके लिए ऐसे (अयं महाराजः) इन महाराज जीवंधर ने ( गोविन्दभूभुजा ) गोविन्दराजसे ( दत्तां ) दी हुई ( नुवते: ) नुवतीकी (पुत्रीं ) पुत्री लक्ष्मणाको ( यथाविधि पर्यणैषीत् ) विधिपूर्वक व्याही ॥ ६१ ॥ इति श्रीमद्वादिमसिंहसूरिविरचिते क्षत्रचूडामणौ सान्वयार्थो लक्ष्मणा लम्भो नाम दशमो लम्बः ॥ - 2008
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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