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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । फिर गोविन्दराजने एक चन्द्रक यन्त्र बनाकर इस बातकी घोषणा कराई कि जो इस चन्द्रक यन्त्रको भेदन करेगा उसे मैं अपनी लक्ष्मणा नामकी कन्या व्याह दूंगा इस घोषणाको सुनकर सब धनुषधारी राजा लोग जिस मंडपमें वह यन्त्र रक्खा था वहां पर आये और फिर सब यन्त्र में स्थित वराहोंको भेदन करनेकी कोशिश करने लगे किंतु कोई भी उनका छेदन करनेमें समर्थ नहीं हुआ अन्तमें जीवंधर स्वामीने अपने आलात चक्रके द्वारा क्रीडा मात्रसे उनको छेद दिया ऐसे उत्तम अवसर पर गोविन्द. राजने रानाओंके समक्ष जीवंधर स्वामीका परिचय देते हुए यह कहा कि यह सत्यंधर महारानके पुत्र मेरे भानजे जीवंधरकुमार है । यह सुनकर बहुतसे राजाओंने यह कहा कि हम लोग भी उनके आकारसे ऐसा ही अनुमान कर रहे थे यह सुनकर काष्टाङ्गारके हृदयमें अत्यन्त दारुण दुःख हुआ और मनमें विचार करने लगा कि मैंने व्यर्थ ही अपने नाशके लिये इसके मामाको यहां क्यों बुलाया और प्रथम मेरे सालेने इसको मार दियाथा फिर ये कहांसे आ गया और ये अपने मामाके बलको पाकर मेरे किस २ अनिष्टको नहीं करेगा इस प्रकार चिन्तामें व्याप्त काष्टाङ्गारको स्वामीके मित्रोंने लड़नेके लिये उत्तेजना की और फिर लड़ाई में वह जीवंधर स्वामीके हाथसे मारा गया । पश्चात् गोविन्दराजने अपनी पुत्रीके साथ जीवंधर स्वामीका व्याह कर दिया और फिर राजपुरीमें जाकर यक्षेन्द्र और अन्य राजाओंके साथ जीवंधर स्वामीका राज्याभिषेक किया। राजा होनेके पश्चात् जीवंधर स्वामीने वारह वर्ष पर्यन्त
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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