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________________ ८४ चतुर्थो लम्बः । قد चतुर्थो लम्बः अथ जीवंधरस्वामी रेमे रामासमन्वितः । संसारेऽपि यथायोग्यगोग्यान्ननु सुखी जनः ॥ १ ॥ अन्वयार्थः - ( अथ ) इसके अनंतर ( रामासमन्वितः ) अपनी गंधर्वदत्ता नामकी स्त्री सहित ( जीवंधर: ) जीवंधर स्वामोने ( रेमे ) क्रीड़ा की । अत्र नीति: (ननु) निश्चय से (संसारे अपि) संसार में भी ( जनः ) मनुष्य ( यथायोग्यात भोग्यात्) अपनी योग्यताके अनुकूल भोग सामग्री मिलने से ( सुखी भवति ) सुखी होता है ॥ १ ॥ माधवोऽथ जलक्रीडां पौराणामुदपादयत् । रागान्धानां वसन्तो हि बन्धुरग्नेरिवानिलः ||२|| अन्वयार्थ (अथ ) इसके अनंतर ( माधवः ) वसंतऋतुने (पौराणां ) पुरवासियोंके (जलक्रीड़ा) जलकेद्वारा फाग खेलानेकी क्रीड़ा ( उदपादयत् ) उत्पन्न की । अत्र नीति: (हि) निश्चयसे (रागान्धानां ) अनुराग से अन्धे पुरुषों का ( बसन्तः ) बसंत (अग्नेः अनिलः इव) अभिका पवनकी तरह (बन्धु) मित्र है ॥ २ ॥ जीवंधरकुमारोऽपि मित्रैर्द्रष्टुमयादमूम् । नवापगाजलक्रीडां लोको ह्मभिनवप्रियः ॥ ३ ॥ अन्वयार्थः - ( जीवंधर कुमारः अपि) जीवंधर कुमार भी ( अमूम् नवापगा जलक्रीड़ां) इस नवीन नदीके जलकी क्रीड़ाको
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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