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________________ ११० वर्धमानचरितम् ध्वजा निपेतुः सममातपत्रैवितत्रसुः शून्यहयाश्च नागैः । तस्मिन्विमुञ्चत्गुरुबाणवृष्टि नेशुदिशो भास्करदीप्तिभिश्च ॥ ५३ नितान्तशुद्धरतिशुद्धवृत्तः शरैरनेकैः स बलानि विष्णोः । करैरिवेन्दुः कमलानि नक्तं निनाय संकोचमितस्ततोऽपि ॥५४ तन्वन्तमित्थं निजबाहुबीयं तं वीक्ष्य भीमं प्रधनाय भीमः । निरस्तभीराजुहुवे शरेण त्रिपृष्टसेनापतिरुद्धृतेन ॥५५ रथेन तस्याभिमुखं स गत्वा जवानिलायामितकेतनेन । मनोजवाश्वेन तमाशु 'बाणैविव्याध चापध्वनिनादिताशः ॥५६ शिलीमुखास्तस्य लुलाव भीमः शरैर्धनुर्वेदविदन्तराले । अलक्ष्यसन्धानविमोक्षकालः सतावतंसीकृतचारुमौबिः ॥५७ चिच्छेद वेगात्सह केतुयष्ट्या शितार्द्धचन्द्रेण शरासनं सः । ततः स मन्त्री कणयेन भीमं शक्त्या च वक्षस्यदयं जघान ॥५८ ari विहायासिलतां गृहीत्वा रथात्समुत्प्लुत्य रथं तदीयम् । ललाटपट्टे सिवरं प्रपात्य जग्राह भीमस्तमुदारसत्त्वः ॥५९ ॥ ५२ ॥ जब हरिश्मश्रु मन्त्री बहुत भारी वाणों की वर्षा को छोड़ रहा था तब छत्रों के साथ-साथ ध्वजाएँ गिर गईं, हाथियों के साथ-साथ खाली घोड़े भयभीत हो इधर-उधर भागने लगे, और सूर्य की किरणों के साथ-साथ दिशाएँ नष्ट हो गई ।। ५३ ।। जिस प्रकार अतिशुद्धवृत्त - अत्यन्त शुद्ध और गोल आकार को धारण करनेवाला चन्द्रमा अत्यन्त शुद्ध किरणों के द्वारा रात्रि के समय जहाँ-तहाँ कमलों को संकोच प्राप्त कराता है उसी प्रकार अति शुद्ध वृत्तः - अत्यन्त शुद्ध आचार वाला अथवा शुद्ध आचार का उल्लङ्घन करनेवाला हरिश्मश्रु अनेक वाणों के द्वारा विष्णु - त्रिपृष्ठ की सेनाओं को जहाँ-तहाँ संकोच प्राप्त कराने लगा || ५४ || इस प्रकार अपनी भुजाओं के पराक्रम को विस्तृत करनेवाले उस भयंकर हरिश्मश्रु को देखकर त्रिपृष्ठ के सेनापति भीम ने जो कि सदा निर्भय रहता था, चढ़ाये हुए वाण से युद्ध करने के लिये ललकारा ।। ५५ ।। धनुष की टंकार से दिशाओं को शब्दायमान करनेवाले भीम ने, जिसकी ध्वजा वायु से लम्बी हो रही थी तथा जिसके घोड़े मन के समान वेग वाले थे ऐसे रथ से उसके सन्मुख जाकर वाणों से उसे शीघ्र ही वेध दिया ।। ५६ ।। जिसके वाण धारण करने और छोड़ने का काल दिखाई नहीं देता था तथा जिसने सुन्दर डोरी को कान का आभूषण बना रक्खा था ऐसे धनुर्वेद के ज्ञाता भीम ने अपने वाणों से उसके वाणों को बीच में ही छेद डाला था ॥ ५७ ॥ भीम ने अर्द्धचन्द्राकार तीक्ष्ण वाण से ध्वजदण्ड के साथ उसके धनुष को शीघ्र ही छेद दिया । तदनन्तर उस हरिश्मश्रु मन्त्री ने कणय नामक शस्त्र से भयंकर भीम के वक्षःस्थल पर शक्ति के द्वारा निर्दयतापूर्वक प्रहार किया ।। ५८ ।। तदनन्तर महापराक्रमी भीम ने धनुष को छोड़ कर तलवार रूपी लता को ग्रहण किया और अपने रथ से उसके रथ पर उछल कर तथा ललाट तट पर श्रेष्ठ तलवार को गिरा कर अर्थात् तलवार से ललाट तट पर प्रहार कर उसे पकड़ लिया ।। ५९ ।। शत्रु के सैकड़ों शस्त्रों के समूह से जिसका वक्षःस्थल १. मोबी म० । २. सितार्द्धचन्द्रेण० म० । ३. प्रपत्य ब० ।
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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