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संपादकीय
॥ जयन्तु वीतरागाः ॥
परम पूज्य परमोपकारक दादी गुरुणीजी श्री दानश्रीजी महाराज, परम पूज्य उपकारी दीक्षागुरुणीजी श्री विद्याश्रीजी महाराज तथा परम पूज्य शिक्षागुरुमीजी श्री विनयश्रीजी महाराजे परम उपकार करीने मारामां त्याग एवं ज्ञान मार्गनी उपासना करवाना संस्कारो सिंच्या छे ते बदल उक्त त्रणे य गुरुणीश्रीओने पुन: पुन: वंदनावली करीने जीवननी धन्यता अनुभवुं छु । पूज्यपाद आगमप्रभाकर श्रुतशीलवारिधि विद्वद्वरेण्य मुनिभगवंत श्री पुण्यविजयजी महाराज साहेबनी निश्रामां अनेक वर्षो सुधी रद्देवानुं सौभाग्य मने मधुं अने तदन्वये ज्ञान तथा ज्ञानि प्रत्येनेा भाक्तिभाव उत्तरोत्तर वध्या तेथी जीवननी सविशेष धन्यता अनुभवाय छे I
पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीनी निधाम रहने प्रस्तुत जिनदत्तकथानक संपादन करवानी भावना होया छतां ते तेमना अस्तित्वकालम अली बनी नहीं छेपटे रोमना देहांत पछी अमारा संवत २०३० नी सालना अमदावादन | चातुर्मासमा पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीना चिरकालना सहायक पं० श्री अमृतलालभाई भोजकने जायतां तेमणे मने संचनपद्धति पगेरे बाटोमा मार्गदर्शन आष्यु अने अवारनवार वाघोळना उपाध्ये आवीने तैयार मेटर जोई जता तथा तत्संबंधी योग्य सूचन पण करता, जेना फलस्वरुप प्रस्तुत कथानक संपादन प्रकाशन यथुं ।
जो के प्रस्तावना लखवा माठे पण मनुं मार्गदर्शन मेळवीने मारे पोते ज प्रयत्न करवो हते पण चातुर्मास पछी अन्यान्य क्षेत्रोसां विहारना कारणे ते काम पं० श्री अमृतभाईने ज सांप्यु अने तेमणे प्रस्तावना लखी आषी ।
५० अमृतभाई श्री महावीर जैन विद्यालय संचालित, पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए प्रारंभेला आगमप्रकाशनकार्यमा सतत रोकायेला होवाथी, श्री महावीर जैन विद्यालयमा मानद मंत्रीओनी अनुमति मेळवीने महामात्र श्री कान्ति लालभाई कोराए पं० अमृतभाईने प्रस्तुत संपादनकार्यमा पूर्ण सहकार आपवानी सूचना आपी ते बद्दल उक्त विद्यालयता अधिकारी महाशयोने तथा पं० अमृतभाईने धन्यवाद जणावु धुं ।
जैन समाज स्पर्शती विविध समस्याओमा संबंध प्रेरणादायक लेखन आदि प्रवृत्तियी जेमना जीवनने। उत्तर भाग वही रह्यो छे से प्रसिद्ध लेखक श्री तिलाई दीप देसाईए, प्रेस, कागलोनी पसंदगी वगेरे कार्यमा जे सहकार आप्यो छे ते बदल तेमने धन्यवाद जणावुं कुं । अनेक अप्रकाशित ग्रंथोंने प्रकाशित करीने श्री आनंद जैन उत्तर समृद्ध करता माये प्रयत्नशील, श्री गुलाबचंद भाई शाह आदि श्रीराम (भादर) ना अधिकारी महानुभावोने पण तेमनी ज्ञानमतिनी अनुमोदना पूर्वक धन्यवाद जगा हूं।
श्री यशोदाश्रीजी, श्री जयन्त प्रभाधीजी आदि शिष्यापरिवारे मारा प्रत्येक कार्यमा सुविधा करी आपी छे से बदल से सर्वना प्रति अने प्रस्तुत प्रकाशन अंगेमा तेमज कायम माटे अमारा उचित प्रत्येक कार्य प्रसंगे सदाय तत्पर एवा श्री लक्ष्मणदास हीरालाल भोजक प्रत्ये पण मारो कृतज्ञभाव व्यक्त करुं हुं ।
कोई बार अनवधानथी अने प्रेस तथा मुद्रणयंत्री क्षतिथी जे कोई अशुद्ध भई छे तेनुं शुद्धिपत्रक ग्रन्थना अते आप्युं छे ते जोवा भलामण करूं धुं । आ उपरांत जे कोई क्षति रही यांचया तथा मने जणाववा अभ्यासी विद्वानाने विनंति कहु ।
गई होय तेने सुधारीने
वैशाखी पूर्णिमा, सं० २०३४
ओंकारश्री