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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। कोई कारण उपस्थित न होने पर शास्त्र और गच्छमर्यादाके विरुद्ध साधु-साध्वियोंको वस्त्रोंका रंगना और केसरिया आदि रंगीन वस्त्रों को धारण भी नहीं करना चाहिये । यानि भगवान महावीरस्वामीके इस शासनमें विना कारण वैसा आचरण करे तो वह शास्त्रविरुद्ध (अयोग्य) ही है ।। (६) प्रतिक्रमणमें श्रुतदेवी, क्षेत्रदेवी, और भुवनदेवी की कायोत्सर्गमें स्तुति कहना वैसे ही लघुशान्ति, बड़ीशान्ति का पाठ कहना भी अनुचित है ।। १५६-१५९ ।। यतश्चागमपञ्चांग्यां, पूर्वाचार्यकृतेषु वै ॥ सदन्थेष्वनुपालब्धे-स्तद्विधानं हि दोषकृत् ।। १६० ।। पुनरिह पाक्षिक-चातु-र्मासिकाऽऽब्दिकाऽऽवश्य कान्ते करणे। भुवनसुरी-क्षेत्रदेव्यो-राज्ञार्थमुत्सर्गेनैव दोषः॥१६१।। क्योंकि जैनागमोंकी पंचांगी और पूर्वाचार्य-विहित प्रमाणिक शास्त्रोंमें उनके उपलब्ध न होनेसे उनका करना कराना दोषयुक्त ही है। परन्तु साधुओंके लिये पाक्षिक, चातुर्मासिक, और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणकी समाप्तिमें आज्ञा निमित्त भुवनदेवी, क्षेत्रदेवीका कायोत्सर्ग कर लेनेमें कोई दोष नहीं है ॥ १६० ॥ १६१ ॥ सामायिकस्य पाठस्य, जैवोचारणानन्तरम् ॥ कार्येर्यापथिका नित्य-मृद्धिकार्द्धिकगेहिनाम् ॥१६२।।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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