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श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। सिंह, उत्तम नर, और हाथी, छोड़ देते हैं, वास्ते अब मुझे यहाँ ठहरना योग्य नहीं ॥ ९५ ॥ उसके बाद नरश्रेष्ठ पंन्यासजी सुबुद्धिसे परस्पर वार्तालाप कर श्रीप्रमोदरुचिजी श्रीधनविजयजी आदि सुयोग्य यतियोंके साथ ' नाडोल ' आदि पुर ग्रामों में विहारकर आहोर विराजित श्रीप्रमोदसूरि गुरुजीके पास आए, और पूर्वभूत कुल वृत्तान्त गुरु व संघके अगाड़ी अच्छी तरहसे कहा ।। ९६ ॥ ९७ ॥
गुरुने श्रीपूज्यको शिक्षा देनेके लिये श्रीसंघकी संमतिसे सुन्दर गीत मंगल ध्वनिके साथ महोत्सव युक्त संवत् १९२४ वैशाख सुदि ५ बुधवारके रोजवेदनेनवेलाब्दे, ऽकरोत्सद्गीतमङ्गलैः। माधवे शुक्लपञ्चम्यां, राजेन्द्रसूरिनामतः ९९ युग्मम् श्रीयशोवन्तसिंहस्तद्-ग्रामाधीशो मुदा ददौ । शिबिकासूर्यमुख्यादि-चामराणि च सूरये ॥ १० ॥ अथो राजेन्द्रसूरीशो, विचरंश्वारुसाधुभिः । प्राप्तः शंभूगढं यातः, फतेसागरसङ्गमम् ॥ १०१ ॥ यतिवर्योऽत्र भूपेश-कार्यकर्ता ह्यकारयत् । सोत्सवमुपहारं च, ततोऽगाजावरापुरम् ॥ १०२ ॥ तत्र संघश्चतुर्मासी, भावेनाऽकारयन्मुदा। व्याख्यानेऽवाचयत्तेन, पश्चमाङ्गं यथाविधि ॥ १०३ ॥