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अनुकरणीय है। अपनी अनुभूति पर जो मैंने दीर्घ सहवाससे प्राप्त की है वह कहे विना नहीं रहसकता कि आप समयका एक एक अणु भी व्यर्थ नहीं जाने देते । खाली बैठे मैंने आपको कभी नहीं देखा । लेखन, पठन-पाठन, अध्ययन कुछ न कुछ चलता ही रहता है। आप समयानुसार तपोधनी भी हैं । द्वादश प्रकारकी तपस्या तथा पंच तिथियोंमें उपवास आदि तप नियमित रूपसे करते हैं।
आप अनेक गुणोंके आकर हैं। श्रीमद् विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने आपको गुणोंसे मुग्ध होकर पंन्यास पदसे अलंकृत किया था। वर्तमान आचार्य-श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने अपने पाटोत्सव पर, जो हाल ही में आहोर संवत् १९९५ वैशाखशुक्ला १० दशमी को हुआ था, आपको उपाध्याय पद प्रदान किया है। लेकिन इन उपाधियोंके आप अनिच्छुक और इनसे असन्तुष्ट हैं ।
ऐसे आदर्श, साहित्य-प्रेमी, श्रम-प्रिय, सफल-सुधारक, विद्या-भक्त, धर्म-प्राण, उपाध्यायश्री अपने अमूल्य गुणरत्नों के आलोक से जनता का अज्ञानतम हरते रहें।
मु० बागरा मारवाड़) कुं० दौलतसिंह लोढ़ा 'अर्विन्द' ता० १९-११-३८ । प्रधानाध्यापक-श्रीराजेन्द्रजैनगुरुकुल.